Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 24
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अध्यापक – नहीं! इसमें तो चरणानुयोग के समान बुद्धिगोचर कथन होता है, पर चरणानुयोग में बाह्य क्रिया की मुख्यता रहती है और द्रव्यानुयोग में आत्म-परिणामों की मुख्यता से कथन होता है। द्रव्यानुयोग में न्यायशास्त्र की पद्धति मुख्य है। छात्र - इसमें न्यायशास्त्र की पद्धति मुख्य क्यों है ? अध्यापक – क्योंकि इसमें तत्त्व निर्णय करने की मुख्यता है। निर्णय युक्ति और न्याय बिना कैसे होगा ? छात्र – कुछ लोग कहते हैं कि अध्यात्म-शास्त्र में बाह्याचार को हीन बताया है, उसको पढ़कर लोग प्राचारभ्रष्ट हो जायेंगे। क्या यह बात सच है ? अध्यापक – द्रव्यानुयोग में आत्मज्ञानशून्य कोरे बाह्याचार का निषेध किया है, पर स्थान-स्थान पर स्वच्छंद होने का भी तो निषेध किया है। इससे तो लोग आत्मज्ञानी बनकर सच्चे व्रती बनेंगे। छात्र - यदि कोई अज्ञानी भ्रष्ट हो जाय तो? अध्यापक – यदि गधा मिश्री खाने से मर जाय तो सज्जन तो मिश्री खाना छोड़े नहीं, उसी प्रकार यदि अज्ञानी तत्त्व की बात सुनकर भ्रष्ट हो जाय तो ज्ञानी तो तत्त्वाभ्यास छोड़े नहीं; तथा वह तो पहिले भी मिथ्यादृष्टि था, अब भी मिथ्यादृष्टि ही रहा। इतना ही नुकसान होगा कि सुगति न होकर कुगति होगी, रहेगा तो संसार का संसार में ही। परन्तु अध्यात्म-उपदेश न होने पर बहुत जीवों के मोक्षमार्ग का प्रभाव होता है और इसमें बहुत जीवों का बहुत बुरा होता है, अतः अध्यात्म-उपदेश का निषेध नहीं करना। छात्र - जिनसे खतरे की आशंका हो, वे शास्त्र पढ़ना ही क्यों ? उन्हें न पढ़े तो ऐसी क्या हानि है ? प्रध्यापक – मोक्षमार्ग का मूल उपदेश तो अध्यात्म शास्त्रों में ही है, उनके निषेध से मोक्षमार्ग का निषेध हो जायगा। छात्र - पर पहिले तो उन्हें न पढ़े ? २१ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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