Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 2
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शास्त्र- भगवान तुम्हारी वाणी में, जैसा जो तत्त्व दिखाया है। स्याद्वाद नय अनेकान्त मय, समयसार समझाया हैं / / उस पर तो ध्यान दिया न प्रभो, विकथामें समय गमाया हैं। शुद्धात्म रुचि न हुई मन में, ना मन को उधर लगाया हैं।। मैं समझ न पाया था अब तक, जिनवाणी किसको कहते हैं। प्रभु वीतराग की वाणी में, कैसे क्या तत्त्व निकलते हैं।। राग धर्ममय धर्म रागमय, अब तक ऐसा जाना था। शुभ कर्म कमाते सुख होगा, बस अब तक ऐसा माना था।। पर ग्राज समझ में आया है कि वीतरागता धर्म ग्रहा। राग भाव में धर्म मानना, जिनमत में मिथ्यात्व कहा।। वीतरागता की पोषक ही, जिनवाणी कहलाती है। यह है मुक्ति का मार्ग निरन्तर, हमको जो दिखलाती है।। गुरु- उस वाणी के अन्तर्तम' को, जिन गुरुओं ने पहिचाना हैं। उन गुरुवर्यो के चरणों में, मस्तक बस हमें झकाना हैं।। दिन रात आत्मा का चिंतन, मृदु सम्भाषण में वही कथन। निर्गन्थ दिगम्बर काया से भी, प्रगट हो रहा अन्तर्मन।। निगॅन्थ दिगम्बर सद्ज्ञानी, स्वातम में सदा विचरते जो। ज्ञानी ध्यानी समरससानी, द्वादश विधि तप नित करते जो।। चलते फिरते सिद्धों से गुरु, चरणों में शीश झुकाते हैं। हम चलें आपके कदमों पर, नित यही भावना भाते हैं।। हो नमस्कार शुद्धातम को, हो नमस्कार जिनवर वाणी। हो नमस्कार उन गुरुओं को, जिन की चर्या समरससानी।। दर्शन दाता देव हैं, पागम सम्यग्ज्ञान। गुरु चारित्र की खानि हैं, मैं बंदों धरि ध्यान।। प्रश्न - 1. देव, शास्त्र और गुरु की स्तुति में से प्रत्येक की स्तुति की चार-चार लाइनें जो आपको रुचिकर हों, लिखिए तथा रुचिकर होने का कारण भी बताइये। 1. शुद्धात्मा का स्वरूप। 2. अन्तरंग भाव को। 3. लीन रहते हैं। 4. समतारस में निमग्न। 48 Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51