Book Title: Updesh Saptati
Author(s): Punyakirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashan

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Page 15
________________ जयत्यतिशयश्रेणी, यदीया जगदद्भुता । लक्षणानां दशशती, येषामष्टाधिका पुनः ।।१२।। यदुक्तं - चउरो जम्मप्पभिई, इक्कारस कम्मसंखए जाए। नवदस य देवजणिए, चउतीसं अइसए वंदे ।।१।। तेषां च देहोऽद्भुतरूपगन्धो, निरामयः स्वेदमलोज्झितश्च । श्वासोऽब्जगन्धो रुधिरामिषं तु, गोक्षीरधाराधवलं ह्यविस्त्रम् ।।२।। आहारनीहारविधिस्त्वदृश्य-श्चत्वार एतेऽतिशयाः सहोत्थाः । क्षेत्रे स्थितिर्योजनमात्रकेऽपि, नृदेवतिर्यञ्जनकोटिकोटेः ।।३।। वाणी नृतिर्यक्सुरलोकभाषा-संवादिनी योजनगामिनी च । भामण्डलं चारु च मौलिपृष्ठे, विडम्बिताऽहर्पतिमण्डलश्रि ।।४।। साग्रे च गव्यूतिशतद्वये रुजा, वैरेतयो मार्यतिवृष्ट्यवृष्टयः । दुर्भिक्षमन्यस्वकचक्रतो भयं, स्यानैत एकादश कर्मघातजाः ।।५।। खे धर्मचक्रं चमराः सपाद-पीठं मृगेन्द्रासनमुज्वलं च । छत्रत्रयं रत्नमयध्वजोंऽहि-न्यासे च चामीकरपङ्कजानि ।।६।। वप्रत्रयं चारु चतुर्मुखाङ्गता, चैत्यद्रुमोऽधोवदनाश्च कण्टकाः । गुमानतिर्दुन्दुभिनाद उच्चकै-र्वातोऽनुकूलः शकुनाः प्रदक्षिणाः ।।७।। ४ उपदेश सप्तति

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