Book Title: Shabdarnava Chandrika
Author(s): Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Pannalal Jain Granthamala

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Page 20
________________ १२ ५२।१५३ १॥४१३२ ३।४।१५० ५।२।८३ यड: २।३११६ डिन्तः सखं | डी खौ जैनेंद्रन्याकरणसूत्राणांप्रामराष्ट्रस्याण्ठणौ २२१११५ नो नी हिंसायां प्रामकौटाचणः ४।२।१२० नो वध लिडि प्रामाप्रान्त्री: ५४१.५ ध्यादेरिका प्रामाचख ३।२।१०२ प्राम्यद्विखुरसंघेऽशिशौ स्त्री प्रायः ११३३१०६ / प्रविाभ्योऽण च ३।३।३५ ङस्डस्योः प्रीमधसंताद् वा ३।३।२४ डन्न् सौ प्रामादछंदसि ३।१।६८ डमो ङमुटु तु प्रात् प्रीष्मावरसमा वुञ् ३३३२७ ङस्यातो नुक् प्रोऽचि ५।३।५६ डस्य झल्क्न्योः किति ग्लाज्याहो निः २२३६३ डान द्वंद्वे ग्लाभूजिस्थो स्नुः २२।१२७ डित् डिति प्रश्व घश् घरखे च गेः ५।१।४६ घभ्युपोद्रम्यमः डे: परात्मनः ५/२।४० घत्रि भावकरणे डेर्यः ४॥४ा२८ घमि प्रायः ४।३।२९६ डेसुटोऽम् घटादिकगेवनुजनीजष्स्नस्क्नसरं-- डैदितो दः ज्यमोऽपर्यपस्खत्कर्मचम्यम प्रोऽम् | डोऽणोऽद्यनाङ् चादेः ज्योस्तु दीर्वा घत्विदंकिमः ३।४।२०७ घतुः ११॥३७ झणाः कुटुक् शरि वा घतोयसमात्रट् बहुलं ४ाश५५ उन्यसेः स्मिन्स्मात् घतोरिथुक् ४।१४ ड्या : घग्दृशक्षे ४।३।२५३ धनाघनपाट्टपटौ ४।३।१६ डन्यापोः क्वचित्खौ घनांतर्घणोचनापधनोपघ्नसंघोद्धनिघं ड्याम्मृद: मूर्तिदेशात्याधानांगासन्नगणशस्त ड्यासुण्मे निमित्ते २॥३७१ / ड्युगिन्नंचोः घस्यत्सुः क्मरः. २।२।१५६ घस्लजलुवसनि २४।१२६ | चक्षः ख्शा वाऽचि घिनः ५।४।१३५ चजोः कुर्घिण्ये तेऽनिटः धुरकेलिमास्वकृष्टपच्या कर्मकर्तरि रा४।६२ | चटकापणर: घेर्दीरनजादेः ५।२२२१२ चतुरः घोषदादेवुन् ४।१।१०६ चतुरनडुहोवा घौ कच्यनक्खे सन्धत् ५।२।२११ चतुर्मासात् खौ घन: ५।४।१२५ चतुःशरेरश्रिकुक्षेः धन: १।१।१०५ चतुष्टयं समंतभद्रस्य एनश्च बधः २।३।६३ चतुष्पाद्गृष्टयादिभ्यां ढञ् घ्नस्तोऽणशो ५।२।३५ चतुष्पद्यपाद्धर्षात् ४।३।१११ ५।१।७४ ५४/१८ ५।२।२०५ કાકાર ४।३।१७८ ११२५५ १।२।१०९ રાજ૮૨ ५।१११ ४।३।१५६ ५।१।११ ५।१।२६ शश ५।४।१५७ २२७ २।१६८ ५।४।१४ ५।१११३ જરૂર૦૮ ४।४।१५१ દારૂાર૨૮ ૩૧ રાષ્ટ૮૬ ३।११५ ४४|० डौ ड्यां १।४१४२ ५।२।६४ ३।११६३ ४।१४६ ५।१७९ ३।३।३६ ४ाश१५७ ५।४१६८ ३११७१ ४१३१३४

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