Book Title: Shabdarnava Chandrika
Author(s): Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Pannalal Jain Granthamala
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जैनेंद्रव्याकरणसूत्राणां
खाच
२२२५० ५।२।२१५ ३२२४७ १४५८ २११५१०६ ४।४।४२
५.८४ ५।१।११४ २।२।५८ १२।३१ ११११०२
5
४॥४॥६२
ग ५३।९३ गजप्रामजनबंधुसहायाचल
गणश्चेः ४४९६ गाणकायाः
३।४।१७ गते स्थानिम्यध्यांतेनैकश्च खट्वाऽक्रमे
१६३६२४ गदमदयमोऽगेः खनेडरेकेकबकाश्च
२।३।११५ गमादीनां को खमादेशे
५।१।१६३/ गमिषुयमा छः खय् खयः शरि
५।४।१४६
| गमः खटपरे खं वा
५।४।२७
गमेःखचखड्डाः खरखुरानस नासिकायाः खौ ४।२१८२
गमेः प्रतीक्षे खरश्चर्
५।२।१८५
गमोवा खश्चाध्वानं च
३।४।१७३
गंधनावक्षेपसेवान्यायप्रतियत्नखश स्वस्य
२।२।८४ प्रकथोपयोगे खायों या
४।२।१२८ गरगलं विषांग्यंगे खारीकाकणीभ्यः कप
३४०४० गवाश्वादिश्च खित्यझेः कृति
४।३।२३२ गवियुधि स्थिर: खुभावे क्वचिण्ण्वुः
२॥३३१०५ गड्वादय ईप: खेऽध्वनः
४१७६ गत्यर्थवदेऽच्छ: खे कृति बहुलं
४।३।१६२ खेयमृषोधं
२।१।१२०
गत्वरः खोऽलंकर्मालंपुरुषाषडक्षाशितंगोः ४।२।१५ । गम्यादिर्वय॑ति
३।३।१०० गम्येऽहाश्वात् ख ४।२।१९६ गमस्नोर्द ३।४।६६ गम्हन्जनखन्घसोऽनडि ५।३।४७
गम्हविद्दवियो वा ४।३।२८६ गर्गभार्गविका ४।३१५५ गर्गादेर्य १।३।३७ गर्तधुगहादिभ्यः
११३११८ गर्भादप्राणिनि खौ क्ताच
३.११३९ , खौ कंथोशीनरेषु
१।४११३
गल्भक्लोषहोडाङित् खौ शरदो वुञ्
२।३।३ गल्हादीनां बहुलं ख तोऽणि
३२११७५ गव्यूतिरध्यमाने खं पादस्याहस्त्यादेः ४।२।१७१ गष्टक खं पिवश्वस्येत्
५।२११३३ गस्थकः ख्यत्योऽतः
४।३।१३१ गाकुटामणि डिद्वत् ख्याते डश्ये
२।२।११० गालिटि ख्यातेऽभिव्यक्त
५।३१५ गागयोः वृषौ करणे
२।२।१७३ | गाथिविदथिकेशिपाणिगणिशः शो य
५४१९५८ स्फादेः
FEEEEEE
शरा४. ५।३१५८ १४ा९८ ५।४।८६ १३१२२ १।२।१६७
२।१२३४ २।२।१६०
૨રૂ ३।४।१६३ ५.११११९
કાકારક ५।१११२ ३३१४१०५ ३२२१३६ ३।२।१५३ ३।४।१६८ २३१४०
२।१।११ १२२२१३७ ४।३।७५ વારા २।२१४९
शश८९ १।४।१३९ ५।२९१
४॥४॥१७२

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