Book Title: Saklarhat Stotram Author(s): Nemvijay Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala View full book textPage 6
________________ समर्पण जेमनी अतुल कृपाना प्रभावे रत्नत्रयीनी पुनित आराधनाना पंथे हुं प्रयाण करी शक्यो, जेमना वात्सल्यभावे म्हने आगमादि ज्ञाननो अल्प पण बोध थयो अने जेमनी पुनित छायामां म्हारुं श्रमण जीवन यत्किंचित् सार्थक थयुं, ते करुणानिधान परमपूजनीय गुरुदेव जैनरत्न व्याख्यानवाचस्पति कविकुलकिरीट सूरिसार्वभौम आचार्यदेव श्रीमद्विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजना पुनित चरणोमां आ लघु संपादन समर्पण करता मने अत्यन्त आनंद थाय छे. भवदीय कृपाकांक्षी शिष्याणु नेमना कोटिशः वंदन. निर्णयसागर प्रेस, मुंबई.Page Navigation
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