Book Title: Saklarhat Stotram
Author(s): Nemvijay
Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala

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Page 5
________________ आना उपर अकबरबादशाहप्रतिबोधक आचार्य श्री विजयहीरसूरीश्वरजी म. ना संतानीय श्री गुणविजय म. ए बहु नानी नही अने बहु मोटी नहि एवी अन्वर्थ नामवाली 'अर्थप्रकाश' नोमनी टीका करी छे. जे घणी सुंदर छे. शब्दे शब्दनी टीका करी अर्थनो सारो प्रकाश पाथर्यों छे. आनी अन्य टीकाओ पण छे. पण आ टीका ए टीकाओथी घणी विशिष्टता धरावे छे. जे विद्वान् वांचकोने स्वयं ख्यालमां आवे तेम छे. टीकाकार प. पू. हीरसूरीश्वरजी म. ना प्रशिष्य होवा जोइए, कदाच शिष्य पण होय. केमके टीकाना आदि तेमज अन्तमां केवल हीरसूरीश्वरजी म. नाज नामनो उल्लेख करे छे. किन्तु तेनो निर्णय पुरता साधन सिवाय करी शकाय नहि, तेओ १७ मी सदीमां थयेला होवा जोइए. ते पण हीरसूरीश्वरजी म. ना कालमांज, अन्यथा श्री विजयसेनसूरीश्वरजी. म. आदिनो नामोल्लेख को होत. . हुं पू. गुरुदेव जैनरत्नव्याख्यानवाचस्पति, कविकुलकिरीट सूरिसार्वभौम, कटोशणनरेशप्रतिबोधक जैनाचार्य श्रीमद्विजयलब्धिसूरीश्वरजी म. नी साथे मुम्बई चातुर्मास माटे विहार करतो पारडी आवेलो अने त्यांना उपाश्रयमां थोडीक आम तेम छूटी पडेली प्रतो जोतां म्हने आ टीका हाथ लागी. में आ काम मुनि श्री नेमविजयजीने सोंप्यु अने तेमने आनुं सम्पादन कयु. बीजी कोइ प्रतनो आधार लेवायो नथी. अन्तमां संशोधन आदिमां पूरतो ख्याल राखवा छतां छद्मस्थताना योगे कोई भूल रही जवा पामी होय तो विद्वानो सुधारी अनुग्रह करशे. परमगुरुदेव आचार्य श्रीमद्विजयलब्धिसूरीश्वरजी लालबाग जैन उपाश्रय, भूलेश्वर । महाराजचरणनलिनभ्रम* मुम्बई. वि. सं. २००२ रायमाण:..... भा. शु. ११ शनि . . .J. विक्रमविजयः.

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