________________
7. ज्योतिर्लोक अधिकार (गाथा 624) इस अधिकार में कुल 624 गाथाएँ हैं । ज्योतिषी देवों का निवास क्षेत्र, उनके भेद, संख्या, विन्यास, परिमाण, संचार-चर ज्योतिषियों की गति, अचर ज्योतिषियों का स्वरूप, आयु, आहार, उच्छ्वास, अवधिज्ञान, शक्ति, एक समय में जीवों की उत्पत्ति व मरण, आयुबन्धक भाव, सम्यग्दर्शन ग्रहण के कारण और गुणस्थानादि का अधिकारों के माध्यम से विस्तृत वर्णन किया गया है। प्रारम्भ में श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र को और अन्त में विमलनाथ भगवान को नमस्कार किया है।
निवास-क्षेत्र के अन्तर्गत बतलाया गया है कि एक राजू लम्बे चौड़े और 110 योजन मोटे क्षेत्र में ज्योतिषी देवों का निवास है। चित्रा पृथिवी 710 योजन ऊपर आकाश में तारागण, इनसे 10 योजन ऊपर सूर्य, उससे 80 योजन ऊपर चन्द्र, उससे 4 योजन ऊपर नक्षत्र, उनसे 4 योजन ऊपर बुध, उससे तीन योजन ऊपर शुक्र, उससे 3 योजन ऊपर गुरु, उससे 3 योजन ऊपर मंगल और उससे 3 योजन ऊपर जाकर शनि के विमान हैं। ये विमान ऊर्ध्वमुख एवं अर्धगोलक आकार के हैं। ये सब देव इनमें सपरिवार आनन्द से रहते हैं।
इन देवों में से चन्द्र को इन्द्र और सूर्य को प्रतीन्द्र माना गया है। इसकी गति दिनराहु और पर्वराहु के भेद के दो प्रकार की है। जिस मार्ग में चन्द्र परिपूर्ण दिखता है, वह दिन पूर्णिमा नाम से प्रसिद्ध है। राहु के द्वारा चन्द्रमंडल की कलाओं को आच्छादित कर लेने पर जिस मार्ग में चन्द्र की एक कला ही अवशिष्ट रहती है, वह दिन अमावस्या कहा जाता है।
जम्बूद्वीप में सूर्य भी दो हैं । सूर्य के प्रथमादि पक्षों में स्थित रहने पर दिन और रात्रि का प्रमाण दर्शाया गया है। इसके आगे कितनी धूप और कितना अँधेरा रहता है-यह विस्तार से बतलाया है। इसी प्रकार भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में सूर्य के उदयकाल में कहाँ कितना दिन और रात्रि होती है, यह भी वर्णन किया गया है।
अनन्तर 88 ग्रहों की संचारभूमि व वीथियों का निर्देश मात्र किया गया है। इसके बाद 28 नक्षत्रों का वर्णन है। फिर ज्योतिषी देवों की संख्या, आहार और उच्छ्वास आदि बताए हैं।
8. सुरलोक अधिकार (गाथा 726) इस अधिकार में 726 गाथाएँ हैं । वैमानिक देवों का निवास क्षेत्र, विन्यास, भेद, नाम, सीमा, विमान संख्या, इन्द्रविभूति, आयु, जन्म-मरण अन्तर, आहार, उच्छ्वास,
तिलोयपण्णत्ती :: 93