Book Title: Pramukh Jain Grantho Ka Parichay
Author(s): Veersagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 232
________________ इनकी सभी रचनाएँ शौरसेनी प्राकृत में हैं। कुछ प्रमुख रचनाओं के नाम 1. समयसार 2. प्रवचनसार 3. पंचास्तिकाय 4. नियमसार 5. बारस-अणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा) 6. अष्टपाहुड ग्रन्थ का महत्त्व 1. 'समयसार' ग्रन्थ का महत्त्व बताना सूरज को दीपक दिखाने के समान है। समयसार की महिमा का वर्णन तो बड़े-बड़े आचार्य भी नहीं कर पाए हैं, अतः हम तो कैसे भी नहीं कह सकते। 2. आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी (समयसार के टीकाकार) ने कहा है कि समयसार से महान, सर्वश्रेष्ठ तीन लोक में दूसरी कोई वस्तु नहीं है। वास्तव में यह अद्भुत, अपूर्व, अनमोल, सर्वश्रेष्ठ और मुकुटमणि महाग्रन्थ है। इसलिए इसे आचार्य अमृतचन्द्रस्वामी ने लोकत्रयैकनेत्रं' अर्थात् 'तीन लोक की इकलौती आँख कहा है। वास्तव में यह जगत का अद्वितीय अक्षय चक्षु है। 3. पण्डित आशाधरजी ने समयसार के बारे में लिखा है कि यह ग्रन्थ द्वादश अंग का सार ग्रन्थ है। 4. समयसार की महिमा अपरम्पार है। शास्त्रों में समयसार को कामधेनु और चिन्तामणि रत्न से भी बढ़कर बताया है। यह समयसार ग्रन्थ आगमों का भी आगम है, लाखों शास्त्रों का सार है। यह जैनशासन का स्तम्भ है। 5. यह ग्रन्थाधिराज अत्यन्त क्रान्तिकारी महाशास्त्र है। इस ग्रन्थ ने पिछले 2000 वर्षों में लाखों लोगों के जीवन को बदला है, उनके जीव को अध्यात्ममय बनाया है। जिनमें ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी, श्रीमद् रायचन्द्र, कानजी स्वामी आदि अनेक व्यक्ति सम्मिलित हैं। 6. बम्बई में श्रीमद् रायचन्द्र जी ने 'समयसार' ग्रन्थ को सर्वश्रेष्ठ हीरा और पारसमणि कहा है। यहाँ तक कि जो व्यक्ति उनके पास समयसार ग्रन्थ लेकर आया था, उसे उन्होंने खजाने में से असंख्य हीरे दान दिए थे। यह प्रसंग बहुत प्रचलित है। 7. 'समयसार' ग्रन्थ पर आज तक विविध भाषाओं में लगभग 100 टीकाएँ 230 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय

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