Book Title: Pramukh Jain Grantho Ka Parichay
Author(s): Veersagar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 242
________________ प्रवचनसार ग्रन्थ के नाम का अर्थ प्रवचन अर्थात् उत्कृष्ट वचन। तीर्थंकरों की दिव्यध्वनि ही उत्कृष्ट वचन है। अत: प्रवचनसार अर्थात् उत्कृष्ट वचनों का सार, दिव्यध्वनि का सार। प्रवचनसार में दिव्यध्वनि का सार निहित है। ग्रन्थकार का परिचय प्रवचनसार आचार्य कुन्दकुन्द का अत्यन्त शिरोमणि ग्रन्थ है। समयसार की भाँति प्रवचनसार भी बहुत अधिक प्रसिद्ध है। आचार्य कुन्दकुन्द का परिचय हम समयसार ग्रन्थ के परिचय में दे चुके हैं। (देखें पृष्ठ 229) ग्रन्थ का महत्त्व 1. 'प्रवचनसार' एक दार्शनिक ग्रन्थ है। यह प्रसिद्ध आगम-ग्रन्थ है। 2. इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि 'प्रवचनसार' ग्रन्थ में केवलज्ञान का स्वरूप बहुत सुन्दर बताया है। केवलज्ञान क्या है, इसकी महिमा क्या है, इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं-इन विषयों का इतना सुन्दर वर्णन किसी भी अन्य ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है। 3. भारतीय दर्शन के ग्रन्थों में प्रमाण और प्रमेय मीमांसा का वर्णन अलग अलग ग्रन्थों में किया है। जबकि 'प्रवचनसार' में एक ही ग्रन्थ में प्रमाण और प्रमेय मीमांसा का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। 3. केवलज्ञान, सर्वज्ञता के स्वरूप का वर्णन अपने आप में अनुपम है, अद्वितीय __है। कृपया पाठक इसे अवश्य पढ़ें। 4. विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में समयसार से अधिक प्रवचनसार ने अपना 240 :: प्रमुख जैन ग्रन्थों का परिचय

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