Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 183
________________ तत्वाववोध भाग ४. १६३ वे हजार पुरुषो पण मांड जाणता हशे; मनन अने विचार पूर्वक तो आंगळीने टेरवे गणी शकीए तेटला पुरुषो पग जाणता नहीं हशे.ज्यारे आवी पतित स्थिति तत्त्वज्ञान संबंधी थइ गइ छे त्यारेज मतमतांतर वधी पड्यांछे एक लौकिक कथन छे के "सोशाणे एक मत" तेम अनेक तत्त्वविचारक पुरुषोना मतमा भिन्नता बहुधा आवती नथी, माटे तत्वाववोध परम आवश्यक छ. ___ ए नवतत्त्व विचार संबंधी प्रत्येक मुनिओने मारी विज्ञप्ति छे के विवेक अने गुरुगम्यताथी एजें ज्ञान विशेष वृद्धिमान कर एथी तेओनां पवित्र पंच महावृत्त द्रढ थशे जिनेश्वरनां वचनामृतना अनुपम आनंदनी प्रसादि मनशे मुनित्वआचार पाळवामां सरळ थइ पडशे ज्ञान अने क्रिया विशुद्ध रहेवाथी सम्यक्त्वनो उदय थशे; परिणामे भवांत धइ जशे. शिक्षापाठ ८५. तत्त्वावबोध भाग ४. जे जे. श्रमणोपासक नवतत्व पठनरुपे पण जाणता. नथी तेओए ते अवश्य जाणवां. जाण्या पछी वह मनन करवां. समजाय तेटला गंभिर आशय गुरुगम्यताथी सद्भावे करीने समजवा. एथी आत्मज्ञान उज्ज्वळता पामशे; अने यमनियमादिकनुं बहु पालन थशे.

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