Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 189
________________ तत्त्वावबोध भाग ८. १६९ अने विघ्नरुप कहेगो तो केवल चार्वाकनो सिद्धांत एआठमो दोप. उत्पत्तिनी ना, विघ्नतानी ना अने ध्रुवतानी ना कही पछी त्रणनी हा कही एना वळी पाछा छ दोष. एटले सर्वाळे चौद दोप. केवळ ध्रुवता जतां तीर्थकरनां वचन त्रुटी जाय ए पंढरमो दोप. उत्पत्ति ध्रुवता लेतां कर्तानी सिद्धि याय जेधी सर्वज्ञ वचन त्रुटी जाय ए सोळमो दोप. उत्पत्ति विनतारुपे पापपुण्यादिकनो अभाव एटले धर्माधर्म सघळु गर्यु ए सत्तरमो दोप. उत्पत्ति विघ्नता अने सामान्य स्थितिथी (केवळ अचळ नहीं) त्रिगुणात्मक माया सिद्ध थायछे ए अहारमो दोप. शिक्षापाठ ८९. तत्वावबोध भाग ८. ___ एटला दोप ए कथनो सिद्ध न थतां आवे छे. एक जैनमुनिए मने अने मारा मित्रमंडळने एम कयुं हतुं के जैनसप्तभंगी नय अपूर्व छे, अने एथी सर्व पदार्थ सिद्ध थाय छे. नास्ति, अस्तिना एमां अगम्यभेद रह्या छे. आ कयन सांभळी अमे वधा घेर आव्या पछी योजना करता करतां आ लब्धिवाक्यनी जीवपर योजना करी. हु धार छर के एवी नास्ति अस्तिना वन्नेभाव जीवपर नहीं उतरी शके लब्धिवाक्यो पण क्लेशरुप यइ पडशे. तोपण ए भणी मारी का तिरस्कारनी द्रष्टि नी. 22

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