Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 202
________________ १८४ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. वीजा गमे तेनुं भले एकदम तमेमान्य न करो पण तत्वने विचारो? शिक्षापाठ ९९. समाजनी अगत्य. ... आंग्लभौमियो संसार संबंधी अनेक कला कौशल्यमां शाथी विजय पाम्या छे? ए विचार करतां आपणने तत्काल जणाशे के तेओनो वहु उत्साह अने ए उत्साहमां अनेक मळवू. कळाकाशल्यना ए उत्साही काममां ए अनेक पुरुपोनी उभी थएली सभा के समाजे परिणाम शुं मेळव्यु ? तो उत्तरमा एम आवशे के लक्ष्मी, कीर्ति अने अधिकार. ए एमनां उदाहरण उपरथी ए जातिनां कळाकौशल्यो शोधवानो हुँ अहीं वोध करतो नथी; परंतु सर्वज्ञ भगवानतुं कहेलू गुप्त तत्त्व प्रमाद स्थितिमा आवी पडयुं छे, तेने प्रकाशित करवा तथा पूर्वाचार्योनां गुंथेला महान शास्त्रो एकत्र करवा, पडेला गच्छना मतमतांतरने टाळवा तेमज धर्मविधाने प्रफुल्लित करवा सदाचरणी श्रीमंत अने धीमंत बनेए मळीने एक महान समाज स्थापन करवानी अवश्य छे, एम दर्शाई छउं. पवित्र स्याद्वादमतनुं ढंकायलु वत्त्व प्रसिद्धिमा आणवा ज्यां सुधी प्रयोजन नथी, त्यां सुधी शासननी उन्नति पण नथी. लक्ष्मी, कीर्ति अने अधिकार संसारी कलाकौशल्यथी मळे छे, परंतु आधर्मकलाकौशल्ययी तो सर्व सिद्धि सांपडशे महान समाजना अंतर्गत उपसमाज

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