Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 210
________________ १९२ श्रीमद् राजचंद्र प्रणीत मोक्षमाळा. शिक्षापाठ १०५. विविध प्रश्नो भाग ४. म०-आवं जैनदर्शन ज्यारे सर्वोत्तम छ. त्यारे सर्व आत्माओ एना वोधने कां मानता नथी? उ-कर्मनी वाहुल्यताथी, मिथ्यात्वनां जामेला दकियाथी, अने सत्समागमना अभावथी प्र०-जैनना मुनियोना मुख्य आचाररुप | छे ? उ०-पांच महावृत्त, दशविधि यतिधर्म, सप्तदशविधिसंयम, दशविधि वैयाहत्य, नवविधि ब्रह्मचर्य, द्वादश भकारनो तप, क्रोधादिक चार प्रकारना कषायनो निग्रहः विशेषमां ज्ञान, दर्शन, चारित्रनुं आराधन इत्यादिक अनेक भेदछे. ०-जैनमुनियोना जेवांज सन्यासियोनां पंचयाम छे; अने चौद्धधर्मनां पांच महाशील छे. एटले ए आचारमा तो जैनमुनियो अने सन्यासियो तेमज वौद्धमुनियो सरखा खरा के ? उ०-नहीं. प्र०-केम नहीं? उ०-एओनां पंचयाम अने पंचमहाशील अपूर्ण छे. महावृत्तना प्रतिभेदजैनमा अति सूक्ष्मछे. पेला बेनास्थूळछे. प्र०-सूक्ष्मताने माटे द्रष्टांत आपो जोइए? उ०-दृष्टांत देखीतुं छे. पंचयामियो कंदमूळादिक अभक्ष्य खायछे सुखशय्यामां पोछे विविध जातनां वाहनो

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