Book Title: Mokshmala
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 215
________________ शुद्धिपत्रक, पृष्ट पनि कीर्ति अशुद्ध कीति वचना वचनो मुवित्र मृविचअहत अहत् योग्यक्षम योगक्षेम पलाळती हती पलामती हती. विडवना विडंबना परत्मा परमात्मा मदचिढानंद सच्चिदानंद मदेव सहेव निर्गय निग्रंथ गृहाश्रमथा ग्रहाश्रमथी जुगुप्ता जुगुप्सा, उत्पन्न उत्पन्न यायछे, भगवंत कहो. भवंत लहो. आवा आवां ११ १६

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