Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 210
________________ [198] कुवलयमाला-कथा हुए कुमार ने विचार किया - 'ऐसा स्पर्श तो पहले अनुभूत नहीं किया था, यह तो मनुष्य का स्पर्श सर्वथा नहीं है।' इस प्रकार सोचते हुए कुमार ने सम्मुख त्रिभुवन में आश्चर्यकारी रूप हारी दो कन्याओं को देख कर कहा -"आप दोनों मानुषी हो अथवा देवी? मुझे इसमें अति कौतुक है।" उन दोनों में कहा - "हम दोनों विद्याधरियाँ आपके पास किसी हेतु से आयी हैं, पर परोपकारी आप हमारी प्रार्थना को व्यर्थ मत कर देना।" कुमार बोला-"बताओ, मैं दुःसाध्य भी आपका कार्य सिद्ध करूँगा।" उन दोनों ने कहा -"देव! सुनिये। कुबेर की दिशा में वैताढ्य पर्वत है। वहाँ उत्तर और दक्षिण दो श्रेणि हैं। उत्तर श्रेणि में एक सुन्दर आनन्दमन्दिर नाम का नगर है। जो कैसा है? वह बहुसुवर्णयुक्त, बहुपुरुष सेवित, बहुजलाशय- परिगत और बहुकुमुदोपवन से सम्पन्न है। वहाँ पृथ्वी-सुन्दर पृथ्वीनेता है। उसकी मेखला नामक देवी है। उसकी कुक्षि से उत्पन्न बिन्दुमती कन्या है और वह सुन्दर अवयवों में अखण्ड सौभाग्यवती चारु चातुर्य की पिटारी पुरुषों से द्वेष रखने वाली है। वह वय, वैभव और कलाओं से सुशोभित भी विद्याधर कुमारों को नहीं चाहती है। तब युवावस्था को प्राप्त उसको गुरुजनों ने कहा-"वत्से स्वयंवृत वर को ग्रहण कर ले।" यह सुनकर उसने हमको कहा-"सखियों! यदि तुम कहती हो तो दक्षिणश्रेणी में मैं तुम दोनों के साथ परिभ्रमण करूँ।" हम दोनों ने भी कहा-"एवमस्तु" यह कहकर गगन में उड़कर पर्वतीयकानन में हम उतरे। वहाँ क्रीड़ा करती हुई हमने एक किन्नर युगल को कामगजेन्द्र कुमार के गुणवृन्द का गान करते हुए सुना। प्रिय सखी ने कहा- "अरी सुख पवनवेगे! आगे होकर यह पूछो कि-'यह कामगजेन्द्रकुमार कौन है और कहाँ का है? जिसका अभी गुणगान किया गया है। तब उस किन्नरी ने निवेदन किया-'हे विद्याधरबाले! वह कामगजेन्द्र कभी न देखा गया है और न सुना गया है। तो यदि उससे कार्य है तो उस किन्नर से पूछो।" उसने आपका सारा वृत्तान्त कहा है। तो यह सुनकर उसने बिन्दुमती के सम्मुख कह दिया। उसको सुनने से उस दिन से लेकर बिन्दुमती बर्फ से क्लिष्ट कमलिनी के समान, प्रिय से वियुक्त राजहंसी के सदृश, मन्त्र से आहत सर्पिणी की भाँति ग्रहग्रस्त सी निर्वचन और निश्चल बनी हुई आलेख्य लिखती रहती है, न गीत सुनती है, न वीणा बजाती है, केवल ग्रहगृहीत सी मृता के जैसी हो गयी है। सखियों से कही हुई भी वह कुछ भी उत्तर नहीं देती है। चतुर्थ प्रस्ताव

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