Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 219
________________ कुवलयमाला-कथा 1 [207] व्यन्तर बच्चों की तरह क्रीड़ा करते हैं । महामांस खा लिया इस लोक की माया को दर्शाते हैं।” वेताल बोला - " यह महामांस तो बिना हड्डी का मुझे रुचिकर नहीं है। यदि हड्डीवाला कटकटा शब्द करने वाला दूसरा माँस देत हो तो दो ।" यह सुनकर कुमार ने दाहिनी जाँघ काटकर चिताग्नि में पकाकर वैताल को अर्पित कर दी। फिर उसने कहा -" हे भद्र! इससे अब मैं पूर्ण हुआ, मैं बहुत ही प्यासा हूँ, तो तुम्हारा रक्त पीना चाहता हूँ ।" " पी लो " यह कहते हुए कुमार ने ज्यों ही नस चीरी त्यों ही आकाश में हाहाकार का अट्टहास फैल जाने पर " इस तुम्हारे अनन्यसदृश साहस से मैं सन्तुष्ट हूँ। वीर ! जो कुछ माँगते हो वही मैं तुम्हें वितीर्ण करता हूँ ।। ८१ ।। " तब कुमार ने कहा कि "यदि तुम सन्तुष्ट हो तो जिसने मेरे पुर को चुराया है उसी को मुझे कहो ।। ८२ ।। " वेताल ने भी कहा कि - "हे देव ! उस चोर का कोई भी प्रतिद्वन्द्वी मल्ल नहीं है, वह देखा हुआ भी पकड़ा नहीं जाता ।। ८३ ।। " यह सुन कर क्षत को अक्षत दृष्टि से देखकर कहा कि " हे वेताल ! तो चोर का स्थान ही बता दो ।। ८४ ।। " उस वेताल ने कहा " यदि ऐसा है तो तत्त्वतः सुन लो, श्मशान के भीतर स्थित वट वृक्ष में उसका आवास है ।। ८५ ।। उस वट में छिद्र ही द्वार है ।" यह सुनकर जल्दी से विकट प्रेत वनवट पर चढ़ कर शाखाओं - प्रतिशाखाओं में, मूल में और पत्र समूह में हाथ में कृपाण लिया हुआ कुमार देखने में प्रवृत्त हुआ। तत्पश्चात् कोटर के छिद्र के समीप राजकुमार ज्यों ही नीचे मुख करता है, त्यों ही उसमें से कश्मीर जघनसार मृगमद परिमल युक्त धूप की गन्ध निकलती है। कामिनीजन से उत्पन्न गीत से युक्त वेणुवीणा का राग सुनकर राजपुत्र ने विचार किया 'उस चोर का मन्दिर देख लिया है। अब जो बलवान् होगा उसी का राज्य है' यह विचार कर उसी विवर में कुछ भूभाग जाकर सुन्दर सुवर्ण तोरण वाले सुन्दर युवतियों के संचार से युक्त मणिमय भवन को देखकर सोचा 'वह दुष्टाचार वाला चोर कहाँ होगा?' यह चिन्तन करते हुए उसने किसी चञ्चल लोचनों वाली और पूर्णचन्द्रमुखी को देखा और पूछा "यह किसका आवास है? तुम कौन हो?' वह परास्कन्दी चोर कहाँ है? स्त्रियाँ क्या गाती हैं?" उसने कहा - " भद्र! कैसे इतनी भूमि में आ गये? तुम अत्यन्त साहसी हो । किस स्थान से आये हो?" उसने कहा - "ऋषभपुर से ।" उसने कहा - " यदि तुम ऋषभपुर निवासी हो तो क्या चन्द्रगुप्त नरेश्वर और उसके चतुर्थ प्रस्त -

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