Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 211
________________ कुवलयमाला-कथा [199] मैंने जाना कि कामगजेन्द्र ही इसकी व्याधि का मूल कारण है। इसलिये उनसे संगम होना ही महा औषध है क्योंकि अग्नि से जले हुओं की अग्नि ही औषध होती है, विष से दुःखियों की विष ही ओषधि है, यह सोचती हुई मैंने मानवेगा से कहा-“हे वयस्ये! इसका चिकित्सक तो मानवेग ही है।" तब दोनों ने कहा-"प्रियसखी! अश्वस्त होओ, हम दोनों वैसा ही करेंगी जिससे उस कुमार को लाकर तेरी व्याधि को दूर कर देंगी।" उसने कहा- "उसको लाने के लिये तुम दोनों जाओ।" 'वैसा ही करेंगी' यह कह कर उस पर्वत की गुफा की शिलातल पर कमल के कोमल पत्तों से बनायी गयी चटाई पर उस विषाद करती हुई बिन्दुमती को बैठा कर हम दोनों चल दी, पर नहीं जानती हैं कि वह पुरी कहाँ है जहाँ तुम हो, कहाँ प्राप्य हो। यह जानने के लिए भगवती प्रज्ञप्ति की समाराधना की। तब उसने बताया कि 'यह कुमार उज्जयिनी में जाता हुआ वन में शिविर बनाकर ठहरा हुआ है।' यह मानकर हम दोनों आपके पास आयी हैं। इससे आगे हे देव! अब प्रिय सखी का जीवन आपके अधीन है, अतः विलम्ब मत कीजिये, शीघ्र उठिये यदि जीती हुई बिन्दुमती किसी प्रकार दीख जाए।" कुमार ने कहा-"यद्यपि अवश्य जाना चाहिये, तथापि देवी के सम्मुख निवेदन करूँगा।" उन दोनों ने कहा-"आप सर्वनीतिपरायण ऐसे स्वामी हो, स्त्रियों का रहस्य कैसे कहोगे? क्या लोगों से कहा गया यह श्लोक नहीं सुना कि गरुड़ द्वारा ले जाए जाते हुए नाग ने यह कहा था कि जो स्त्रियों को गोपनीय बात कहता है उसके जीवन का अन्त है।। ७८ ।। अतः नारियों को रहस्य नहीं कहना चाहिए।" कुमार ने कहा- "इसमें कुछ कारण है, एक बार मैंने उसको वर दिया था कि-'जो कुछ सुना हुआ, देखा हुआ और अनुभूत किया हुआ होगा उसे मैं बता दूँगा।' तब कुमार ने कहा-"प्रिये! इस समय मैं जाता हूँ।" उसने कहा "जो देव को रुचे वह करो" तब देवी ने अञ्जलिपुट की हुई विद्याधरियों को देवी ने कहा - "इन मेरी पति को मैंने आप दोनों के न्यास किया है, इसलिए शीघ्र इनको यहाँ लाकर छोड़ देना।" तब वे दोनों कुमार को विमान में चढ़ाकर आकाश में उड़ गयीं। तदनन्तर उसकी प्रिया "इसमें कोई माया है या स्वप्न है, इन दोनों के द्वारा ले जाये गये मेरे पति आयेंगे या नहीं?" ऐसा ध्यान करती हुई रही त्यों ही थोड़ी बची हुई रात्रि में विमान आ पहुँचा। तब उसे देखकर उसकी भार्या नलिनी वन के दर्शन चतुर्थ प्रस्ताव

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