Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 215
________________ कुवलयमाला-कथा [203] पड़ते हैं तो उन्हीं को जाकर पूछता हूँ कि यह वृत्त सत्य है अथवा असत्य? यदि भगवान आदेश दे देंगे तो सत्य है, अन्यथा माया है", यह कहता हुआ कामगजेन्द्र रवाना हुआ। प्रिया ने पूछा- "यह सत्य हुआ तो क्या कर्त्तव्य है?" उसने कहा- "सत्य होने पर व्रत ग्रहण करना है।" उसने कहा-"यदि आप देवव्रत ग्रहण करेंगे तो मैं भी ग्रहण करूँगी" "ऐसा हो" यह कहता हुआ कुमार यह मेरे समवसरण में पहुंचा है। इसने प्रणाम करके मुझसे पूछा -" क्या यह इन्द्रजाल है अथवा सत्य है?" मैंने कहा- "यह सत्य है।" यह सुनकर उत्पन्न वैराग्य वाला सैन्य-शिविर में गया। गौतम स्वामी ने पूछा"भगवन्! यहाँ से गये हुए उसने क्या किया? अभी क्या कर रहा है और कहाँ है।" भगवान् बोले- "यहाँ से जाकर देवी के सम्मुख 'यह सत्य है' ऐसा निवेदन करके माता-पिता को और अपने पुत्र दिग्गजेन्द्र को पूछकर बन्धुजनों से सम्मानित हुआ यह इस समय समवसरण के बाहरी प्राकार के गोपुर के आगे आ गया है, यह भगवान् के कहते ही सत्वर आ गया। तब भगवान् ने बालुकाभक्षण के समान स्वादहीन, क्षुद्रबीजकोश के भक्षण के सदृश अतृप्ति के जनक, खारे पानी को पीने के समान प्यास बढ़ाने वाले, मिथ्यात्व की भाँति भववर्धक उपहसनीय, विद्वज्जनों से निन्दनीय विषयसुख-सेवन को मानता हुआ कामगजेन्द्रकुमार उस वल्लभा और परिजन के साथ प्रव्रजित कर दिया गया। उसने अन्य दिवस भगवान् को पूछा -"वे पञ्चजन कहाँ हैं?" भगवान् ने कहा- "दोनों देव हैं, वे भी अल्पायु हैं, बाकी के मनुष्यलोक में। तब भगवन् ने मणिरथ कुमार महर्षि को दर्शा दिया। यह मानभट जीव है। वहाँ भव में आप मोहदत्त थे, उनका जीव भगवान् कामगजेन्द्र। यह लोभदेवजीव है, वह भी मर्त्यलोक में अवतीर्ण है, उसका वैरिगुप्त यह नाम है। सभी को इस भव में सिद्धि हो गयी" यह कहते हुए भगवान् श्री महावीर उठ खड़े हुए। दूसरे दिन भव्य कुमुद के लिये मृगाङ्क चन्द्रमा बने हुए त्रिभुवनरूपी भवन के दीपक श्री वर्धमान काकन्दीपुरी में बाह्योद्यान में समवसृत हुए। सभा में जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव- निर्जरा और बन्ध-मोक्ष का स्वरूप का आख्यान किया। तब गौतम ने पूछा- "भगवन् ! कैसे जीव कर्म को बाँध लेते हैं ?" भगवान् बोले -"लेश्याभेद से जीव शुभ-अशुभ कर्मों को अर्जित करते हैं। इसमें जम्बूफल के भक्षण का दृष्टान्त है चतुर्थ प्रस्ताव

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