Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 227
________________ [215] कुवलयमाला-कथा स्वयम्भुदेव से अधिष्ठित उसी वट पर आकर आश्रित हो गये। पुनः वहाँ आकर एक पक्षी ने पक्षिसमुदाय के मध्य में स्थित वृद्धावस्था से जीर्ण अङ्गों वाले एक पक्षी को प्रणाम करके कहा- "तात! आपसे मैं उत्पन्न हुआ, आपने मुझे संवर्द्धित किया, मैं तरुण बन गया दोनों नयन मेरे आज सफल हो गये, कान भी कृतार्थ हो गये, यह पक्षियुगल भी सार्थक हो गया। आज मैं गरुड़ से भी अपने आपको गुरुतर मानता हूँ।" यह सुनकर जीर्णपक्षी ने कहा -"इस समय तुम अत्यन्त अमन्द आनन्द - सन्दोह से पूर्ण मनवाले से दीख रहे हो, अतः भ्रमण करते हुए तुमने जो कुछ भी देखा सुना या अनुभूत किया - वह सब बताओ।" उसने कहा -"तात! सुनिये, आज मैंने आपके पास से गगन में उड़कर कुछ आहार ढूँढते हुए गगन में भ्रमण किया तो हस्तिनापुर में तीन प्राकारों के बीच मनुष्यलोक को देख कर 'अहो! यह मैं क्या फिर देख रहा हूँ, ' यह सोचकर द्वितीय प्राकार में पक्षियों के गण में जाकर बैठे हुए मैंने रक्त अशोक वृक्ष के नीचे सिंहासन पर बैठे हुए भगवान् को कोई दिव्यज्ञानी जान कर विचार किया -'अरे! जो मुझे द्रष्टव्य था त्रिभुवन में आश्चर्यकारी उसे मैंने देख लिया।' फिर तात! जब उस भगवान् ने समस्त संसार का स्वरूप बताया, यथा - प्राणिगण का विचार दर्शाया, कर्मप्रकृतिविशेष का विस्तार किया, विशेष करके बन्धन निर्जरा का अभाव कहा, संसाराश्रव का विकल्प बताया, उत्पत्ति- स्थिति- प्रलय का विशेष विस्तार किया, यथास्थित मोक्षमार्ग का निरूपण किया। तब मैंने भगवान् से पूछा - "हे नाथ! हमारे जैसे पक्षी वैराग्य किए हुए भी तिर्यग्योनि के कारण पराधीन हुए क्या करें?" तब भगवान् ने मेरा अभिप्राय जानकर कहा - "हे देवानुप्रिय! तुम संज्ञावान् पञ्चेन्द्रियों वाले पर्याप्त तिर्यग्योनि भी सम्यक्त्व को प्राप्त हो।" गणधारी ने कहा - "कौन से प्राणी नरकगामी होते हैं?" भगवान् ने कहा -"जो पञ्चेन्द्रिय वालों का वध करने वाले हैं और माँसाहारी हैं वे सभी देहधारी नरकगामी होते हैं। जो सम्यक्त्व को प्राप्त करते हैं वे नरक और तिर्यक् के द्वारों को बन्द करने वाले हैं।" मैंने कहा -"देव! पक्षी पञ्चेन्द्रिय वालों को मारने वाले माँसाहारी होते हैं तो वे कैसे सम्यक्त्व को धारण करते हैं? हमारा जीवन तो पापपरक ही होता है। ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिये?" तब भगवान् ने कहा - चतुर्थ प्रस्ताव

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