Book Title: Kuvalaymala Katha
Author(s): Vinaysagar, Narayan Shastri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 216
________________ [204] कुवलयमाला-कथा एक बार किसी ग्राम से छः पुरुष हाथ में परशु लिए हुए समुन्नत तरु का छेदन करने के लिये वन के भीतर प्रविष्ट हुए। उन्होंने एक वृक्ष पर भात रख दिया। उस भातवाले वृक्ष पर चढ़कर कुवानरों ने वह सारा ही भात खा लिया, खाकर उसके बर्तन को भी तोड़कर ये चले गये। उन वनछेदनकर्ताओं ने भी मध्याह्न में भूख से कृश कुक्षिवालों ने और तृषा से तरल चित्त वालों ने वहाँ उस भात को नहीं देखा और पात्र को भी टूटा हुआ देखा। तब उन्होंने यह समझा कि 'वानरदल ने सारे ही भात का आस्वादन किया है तो हम भूखों की क्या गति होगी?' यह विचार कर उठकर फल खोजने के लिये प्रवृत्त हुए, उन्होंने एक जामून के पेड़ को फलित देख कर परस्पर मन्त्रणा की- 'कहो, कैसे जामून के फलों को भक्षण करें?' तब जामून के फलों को देखकर उनके बीच में से एक ने कहा-"सभी की पञ्चशाखाएँ परशु आयुध से व्यग्र हैं, अतः मूल में से इसे छेदकर फलभक्षण कर लें।" यह सुनकर दूसरा बोला- "इस पेड़ में मूल से भी छेदने में आप को कौन सा गणलाभ होगा, केवल इसकी शाखायें ही काट ली जाती हैं।" तीसरे ने कहा- "शाखायें फली नहीं हैं अतः प्रतिशाखा ही ले ली जाती हैं।" चौथा बोला-प्रति शाखाओं को नहीं, केवल गुच्छे की गिरा लिये जाते हैं। “पाँचवें ने कहा मेरी ही बुद्धि को इसमें किया जाय, लाठी से पके जामून के फलों को आहत करके मार दो।" तब कुछ हँस कर छठा बोला-"अरे लोगों! तुमको बड़ा अज्ञान है, महान् पाप का आरम्भ है, लाभ थोड़ा है, यह यहाँ क्या प्रारब्ध है? यदि तुमको जामून के फलों को खाने से कार्य है तो इन पके हुए तोता-मैना आदि से गिराये हुए, स्वभाव से गिरे हुए जामून के फलों को स्वतन्त्रता से खा लो, अन्यत्र मत जाओ।" इस प्रकार वे सभी उन जमीन पर गिरे हुए फलों से सौहित्य सुखी हो गये। सभी का फलों का उपभोग करना सदृश ही है, किन्तु जिसने उसमें बहुत प्रकार का पाप बताया कि यह वृक्ष मूल से भी छेदा जाता है- मर कर कृष्ण लेश्या से अवश्य नरक का अतिथि ही है। दूसरे ने कहा कि शाखायें ही काटी जायें वह नील लेश्या से विपन्न होकर नरक या तिर्यक्त्व को प्राप्त होता है। तीसरे ने कहा कि प्रतिशाखाओं को ही लिया जाए, वह कापोतलेश्या से तिर्यक् योनि में उत्पन्न होता है। चौथे ने कहा कि केवल गुच्छों को ही ले लिया जाय वह तेजोलेश्या से नर हो जाता है। पाँचवे ने कहा कि पके-पके फल गिरा लिये चतुर्थ प्रस्ताव

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