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श्री कल्पसूत्र हिन्दी
नौवा
व्याख्यान
अनुवाद
1114811
* समावेश करना नहीं कल्पता । एवं दत्ति से अधिक लेना भी नहीं कल्पता । उस दिन उसे उतने ही भोजन से रहना है 1. कल्पता है, परन्तु आहार पानी के लिए गृहस्थ के घर उसे दूसरी दफा जाना नहीं कल्पता 1261
ग्यारवां चातुर्मास रहे हुए साधु साध्वियों को आगे कथन किये स्थानों में भिक्षार्थ जाना नहीं कल्पता । शय्यातर-उपाश्रय के मालिक का घर और दूसरे छः घर त्यागने चाहियें । क्यों कि वे नजदीक होने से साधु के गुणानुरागी होने के द्वारा उद्गमादि दोष की संभावना होती है । किसको जाना न कल्पे ? निषिद्ध घर से पीछे लौटनेवाले साधु को न कल्पे, अर्थात् निषिद्ध किये घर से उसे दूसरी जगह जाना चाहिये यह भाव है । यहां भिक्षा के लिए जाने में बहुवचन के बदले एक वचन उपयुक्त किया है, पर बहुतपन इस प्रकार दिखलाते हैं । सात घर
में मनुष्यों से भरपूर जीमन हो तो वहां जाना नहीं कल्पता । यहा अर्थ में सूत्रकार के जुदे जुदे भात हैं । एक atake आचार्य कहते हैं कि निषिद्ध घर से अन्यत्र जाते हुए साधुओं को अपने जीवन में उपाश्रय से लेकर सात घर तक
भिक्षा के लिए जाना नहीं कल्पता । दूसरे कहते हैं कि निषेध किये घर से दूसरी जगह जाते हुए साधुओं को अपने जीवन में उपाश्रय से लेकर पहले सात घर भिक्षा कि लिए जाना नहीं कल्पता । यहां दूसरे मत में उपाश्रय से शय्यातर और दूसरे पहले सात घर त्यागना यह भाव है ।271
बारहवां चातुर्मास रहे पाणहपात्री जिनकल्पी आदि साधु को ओस, धुंध एसी वृष्टिकाय-अप्काय पड़ने पर गृहस्थ के घर भात पानी के लिए जाना आना नहीं कल्पता 128। चातुर्मास रहे करपात्री जिनकल्पी आदि
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