Book Title: Kalpasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh

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Page 306
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृहस्थ के घर पर यदि दोनों ही वस्तु साधु के आने से पहले पकानी रक्खी हो तो दोनों ही लेनी कल्पती हैं। जो चीज उसके आने से पहले रांधनी शुरू की हो वह उस साधु को कल्पती है और उसके आने पर रांधने रक्खी हो सो उसे नहीं कल्पती । चातुर्मास रहे साधु या साध्वी गृहस्थ के घर पर भिक्षा लेने के लिए गया हुआ हो उस वक्त यदि रह कर वारिस पड़ती हो तो उसे आराम या वृक्ष के मूल नीचे जाना कल्पता है, परन्तु पहले ग्रहण किये 4 भात पानी सहित भोजन का समय उलंघन करना नहीं कल्पता । यदि उस वक्त वृष्टि न होवे तो आराम या वृक्ष के मूल नीचे रहा हुआ साधु क्या करें ? उत्तर देते हैं-पहले उद्गम आदि से शुद्ध आहार खाकर पीकर पात्र निर्लेप कर और धोकर एक तरफ पात्रादि उपकरण को रख कर (शरीर के साथ लगा कर) वर्षते वर्षात में सूर्यास्त से पहले जहां उपाश्रय हो वहां जाना कल्पता है । परन्तु वह रात्रि उसे गृहस्थ के घर पर ही निकालनी नहीं कल्पती, क्योंकि एक ले साधु को बाहर रहने से 'स्वपरसमुत्था' - अपने से और दूसरों से उत्पन्न होते बहुत से दोषों की संभावना है, एवं उपाश्रय में रहनेवाले साधु भी चिन्ता करें । चातुर्मास रहे साधु साध्वी गृहस्थ के घर भिक्षा के पलिये गया हुआ हो तब यदि थम थम कर वृष्टि होती हो तो उसे आराम के नीचे यावत् वृक्ष के मूल नीचे जाना कल्पता है । अब थम थम कर वृष्टि होती हो तो आरामदि के नीचे साधु किस विधि से खड़ा रहे सो बतलाते हैं म । विकटगृह वृक्षमूलादि के नीचे रहा हुआ साधु एक साध्वी के साथ नहीं रह सकता । वैसे स्थान में एक साधु को दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता । For Private and Personal Use Only

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