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श्री कल्पसूत्र
नौवा
हिन्दी
व्याख्यान
अनुवाद
1115811
चिल्लाया और बोला कि पीड़ा होती है । कुंभार ने फिर मिच्छामि दुक्कडं दिया । तब क्षुल्लक बोला-बारंबार वही 5 काम करते हो और माफी भी मांगते हो या मिच्छामि दुक्कडं भी देते हो यह कैसा मिच्छामि दुक्क्ड है ? कुंभार । बोला महाराज ! जैसा आपका मिच्छामि दुक्कडं है वैसा ही मेरा भी है 1591
25 चातुर्मास रह साधु साध्वी को तीन उपाश्रय ग्रहण करने कल्पते हैं । जंतु संसक्ति आदि के भय से उन तीन उपाश्रयों में दो उपाश्रयों को बारंबार प्रतिलेखन-साफसूफ कर रखना चाहिये । जो उपाश्रय उपभोग में आता. न हो उस सम्बन्धी प्रमार्जना करनी चाहिये । अर्थात् जिस उपाश्रय में साधु रहते हों उसको प्रातःकाल, जब दो पहर
के समय गोचरी को जावें तब और फिर तीसरे पहर के अन्त में इस तरह तीन दफा प्रमार्जित करना चाहिये । चातुर्मास के सिवा दो दफा प्रमार्जना करनी चाहिये । जब उपाश्रय जीव से असंसक्त हो तब की यह विधि है । यदि जीव से संसक्त हो तो बारंबार प्रमार्जना करनी चाहिये । शेष दो उपाश्रयों को नजर से देखते रहना चाहिये* । परन्तु उन में ममत्व न करना चाहिये । तथा तीसरे दिन प्रोंछन से-दंडासन ने पडिलेहन करना चाहिये 16011..
26 चातुर्मास रहे साधु साध्वी को अन्यतर दिशाओं का अवग्रह कर के अमुक दिशा और अनुदिशा-अग्नि X आदि विदिशाओं का अवग्रह कर के अमुक दिशा या विदिशा में मैं जाता हूं दूसरे साधुओं को यों कह कर भात
पानी के लिए जाना कल्पता है । हे पूज्य ! ऐसा किस हेतु से कहा है ? इस तरह शिष्य की तरफ से प्रश्न
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