Book Title: Kalpasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh

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Page 308
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 40 500 40 500 4050040 www.kobatirth.org चौदहवां चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को 'मेरे लिए तुम लाना' जिसको ऐसा न कहा हो उस साधु को 'तेरे योग्य मैं लाऊंगा' ऐसा किसी को मालुम किया है। ऐसे साधु को निमित्त अशन आदि आहार नहीं कल्पता । हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है ? शिष्य की ओर से यह प्रश्न होने पर गुरू कहते हैं "जिसको मालूम नहीं किया गया ऐसे साधु के लिए आहार लाया गया हो वह यदि इच्छा होवे तो आहार करे और यदि इच्छा न हो तो आहार न करे और उलटा कहे किसने कहा था जो तू यह लाया है ?" यदि इच्छा बिना ही दाक्षिण्यता से वह खावे भी तो अजीर्णादि से दुःख पैदा हो और चातुर्मास में कभी परठना पड़े तो शुद्ध स्थान की दुर्लभता के कारण दोषापत्ति होवे इसलिए पूछ कर ही लाना चाहिये । - पन्द्रहवां चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को पानी से निचड़ते शरीर से तथा थोड़े पानी से भीजे हुए शरीर से अशनादि चार प्रकार का आहार करना नहीं कल्पता । हे पूज्य ऐसा किस लिए ? शिष्य का यह प्रश्न होने पर गुरू कहते हैं कि जिसमें लंबे काल में पानी सूके ऐसे पानी रहने के स्थान जिनेश्वरों ने सात बतलाये हैं-दो हाथ, हाथों की रेखायें, नख, नखों के अग्रभाग भमर आंखों के उपर के बाल दाढी और मूछ । जब यह यों समझे कि मेरा शरीर पानी रहित हो गया है, सर्वथा सूक गया है तब अशनादि चार प्रकार का आहार करना कल्पता है । • सोलहवां चातुर्मास रहे साधु साध्वियों को जो कथन करेंगे उन आठ सूक्ष्मो पर ध्यान देना चाहिये । अर्थात् " For Private and Personal Use Only 05405440500400 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

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