Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देवभदसूरिविरहओ
कहारयणकोसो ॥ सामन्नगुनाहिगारो ।
॥ १३८ ॥
जाव चिह्न यात्र एवं संसम्मसमुग्गय विवेयवससमा साइयजाईसरणेण हरिषेण सचोपलोयणम्नुणियतुहसरूवेण आगंतूण दरिसिया कल्पो निकटखा तहाविहा चेहा । मुणियवदिगियामारो य एस अणगारो हरिणोवदंसिखमाणमग्मी [समा]गतो तुहंतिमं चिता भो महाणुभाव ! न तुमं सामचपुन्नो सि ॥ छ।
इमं व सोचा चत्रमयसवपुत्तवियप्पो परमं पमोयपम्भारमुद्वहंतो पसुत्तो रयणीए संगमतो । बहुलंघणाणुचियकंदमूल-फलाइवसती समुप्पनं उदरमूलं, जाया बाढं अरई, तहाविद्दपडियाराभावओ य मरिऊण तीए चेव अवज्झाए नगरीए नरिंदयिजयराममहिसीए सीयानामाए देवीए गन्भम्मि संभ्रूओ पुत्तत्तणेणं ति । जम्मणसम [ए य] एयस्स महादुग्गट्टि - यपचंतपुहइपालविजएण बद्धाविओ जणगो । कैयं च से समहिगहरिमुल्लासपुचयं जम्मणवद्भावणयं, बारसाहे थ पयेडियं सुजओ ति नामं । समइकंतबालभावो य पढमं पडिवनो बाहत्तरीए कलाहिं, पच्छा बत्तीसराय कन्नगाहिं । अवि यचउरगुणो यदंईनामियकोदंडको डिभागम्मि । चोजमिणं चउदिसि नमइ भीयअरिराय सिरिविसरो घोरघणश्रणिय विब्भमपयंड कोदंडगुणझणकारो । कुणइ अकाले चिय राय हंसवग्गं भउविग्गं
॥ १ ॥
एगो वि से पयावो सक्खा दीसह दुहा परिणमंतो । हिमसिसिरो पणयाणं इयराण य पलयजलणसमो
॥ २ ॥ ॥ ३ ॥
१ एतत्संसर्गसमुङ्गतबिबेकलश समासादितजातिस्मरणेन हरिणेन सर्वतः प्रलोकन ज्ञातत्वत्स्वरूपेण ॥ २ व्यपगत सर्वपूर्वोक्तकुविकल्पः ।। ३ 'धम्म' प्रतौ ॥ ४ कयश्च से प्रतौ ॥ ५ प्रतिष्ठितम् ॥ ६ "दंडनमिय" प्रतौ ॥ ७ पोरषमस्तनितविभ्रमप्रचण्डको दण्ड गुणक्षणत्कारः ॥ ८ राजहंसाः राजान ॥
य विजाहरचकवट्टिना पट्टिया मंत-तंता, तेहिं वि समहिगतरं वड्डिओ वाही । सोगसंभारपूरिअंतगलरंधो य रोयंतो सो वारिओ पक्षसिमहाविजदेवयाए, जहा
भो खयराहिव ! किमेवं गरुयविञ्जाहरवंसजम्म सहसंभूयं पि धीरिममवहाय पागयनरो व 'निवेयमुवहसि । पुचकयदुकयाणं पि किं देवो दाणवो वा सयमेव तित्थयरो भयवो वा गोयरमगतो दिडो निसामिओ वा ? जमेवं संतप्पसि । एएण हि महाणुभावेण पुचजम्मे कंष्वीपुरेसरसिरिवम्मनरिंदपुरोहियभवे वट्टमाणेण अचंतराय सम्माणजायजण पूयाइरेगपरिषद्विषविहमयहाणेण सहिभीयणकरणपयट्टेण तक्खणमासखमणपारणयागयगयउररायरिसिणो सणकुमारस्स हीलाए उचिट्ठा साबसेसा दवाविया भिक्खा । मुणिणा वि मुणियतका [लो ]च्चियदवाइसुद्धिणा गहिया आगमसुतविहिणा, परिभोत्तमारद्वा थ । नवरं देवयानिवारिएण परिहरिया अोण, तहा वि देवयाए जायगरुयामरिसाए पुरोहियसरीरे निवत्तिया समकालं सोलसमहारोगायंका । तेहिं अच्चंतनाहिनमाणो मीणो व थोवजलखित्तो तरवेद्धिं कुतो मतो, उववओो य निंदियजाईसु, तत्थ वि रोगनिवहविहुरिओ विवभो । एवं कवच भवगहणाई अणुभविय तिक्खदुखाई दुकम्मसावसेसयाए कयतहाविहमुकयविसेसो संपयमेसो तुह पुत्तत्तणं पत्तो, पुम्बुतदोसलेसओ य इमं दुरथावत्थमुवगओ ति । ता विभावियभवभावसरूवो महाराय ! मुं
२ शोकसम्भारपूर्यमाणगलरन्ध्रः ।। २ निवेय प्रतौ ॥ ३ "समाणजाणजण प्रतौ । अत्यन्त राजसम्मानजातजनपूजातिरेकपरिवर्धिताष्टविधमदस्थानेन स्वगृहभोजनकरणमतेन तत्क्षणमा सक्षपणपारणकागतगजपुर राजर्षेः सनत्कुमारस्य हीलया उच्छिष्टा ॥ ४ ज्ञाततत्कालोचितद्रव्यादिशुदिना ॥ ५ तीनव्याकुळी भावम् । ६ च समायं प्रती ॥
यत्युपष्ट म्भदाना
धिकारे सुजयराजर्षि
कथान
कम् १८ ।
॥१३८॥

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