Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देवभद्दसूरिविरइओ
कहारयण
कोसो ॥ विसेसगुनाहिगारो ।
॥३१६॥
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एवं च पारद्धधम्मविरुद्ध किरिया विखुद्धचित्तेण तेण न सरियं थंडिलाईण पडिलेहणाइ किचं । केवलं 'कइया उग्गमिही मिहिरो ? कया य इत्थमित्थं च भोयणाइ का ?" ति चिंतंतो, लोयलज्जाए य बज्झवित्तीए पच्चक्खाण मखंडितो, निसाबसाणसमय समुप्पन्नातुच्छच्छुहा वियणोव कामियजीविओ मरिऊण वंतरेसु उववन्नो । तत्तो चुओ य एस खेमदेवो त्ति वणियपुत्तो संवृत्तो । पुवभवपोसह पश्चश्य मच्चुभावाओ य तन्नामुकित्तणुप्पन्नजाईसरणो भो बंभदेव ! तुमए सायरं धरिजमाणो वि पलाणोति ।
नियपावकम्मदुविलसियाणमविभाविऊणैमवराहं । रूसंति धम्मकिचाण ही ! महामोहविष्फुरिय
॥ ४ ॥ छ ॥
जं जम्मि देस-काले सुहं व असुहं व पाणिणा बद्धं । तं तम्मि चेव उदयं उदेह को कस्स इह दोसो ? विश्वसयसंभवे वि हु मूढा पावेसु उज्ज्ञ्जया बाढं । थेवे वि विग्वलेसे परम्मुहा धम्मकिचेसु धम्मत्थपयट्टाणं विग्धो विग्धयमेह निब्भतं । किंतु निकोइयकम्मुब्भवोऽयमेयं न बुज्झति यंभदेवेण भणियं भयवं ! को एयस्स दोसो १ अकलाणभायणत्तणमेवावरज्झइ, ता काऊण पसायं देह मे पवदिणे पडच पडिपुत्रपोसहवयं ति । तओ मुणिणा विभाविय जोग्गयं आरोत्रियं से पोसहवयं । निच्छिन्नभवन्नवं व अप्पाणं मन्नतो परमपरिओसपरिगओ गुरुणो अणुसासणं सिरसा पडिच्छिऊण गओ नियेगेहं । पइदिणपत्रतविमुज्झमाण सुहज्झवसाओ कालं बोलेइ ।
१ भानुः ॥ २ चुतो य प्र० ॥ ॥ ३ "ण अव प्र० ४ 'ग्घाइमे खं० ॥ ५ निकाचितकर्मोद्भवः ॥ ६ यहिं प्र० ॥
जो देसओ य वावारचागमायरइ सो न नियमेणं । सामाइयं पवज्जइ इयरे य करेह तं नियमा पडिपुन पोसहं साहुवसहि-चेइयघरेसु गिण्हेर । पोसहसालाए वा वि मुकमणि-कंचणाभरणो वाएइ पोत्थयं सो पढेइ वा झायई सुहज्झाणं । जह साहुगुणासत्तो करेमि किं मंदभग्गो हं १ एवं पवन पडिपुन पोसही पहवासरेसु गिट्टी । तन्निम्मलत्तहेउं अइयारे बजई पंच
॥
अप्प डि- दुप्पडिलेहिय- अपमञ्जिय- दुप्पमज्जियं च पिहो । सेज संथारं वा पासवणुच्चारभूमिं वा सेवं तस्सऽइयाश एए चउरो वि पोसहे चरिमे । एगो आहाराइसु सम्मं अणुपालणा विरहे सेज बसही भन्नइ संवारो पीट- फलगमाईओ । पयडत्थाओ जाणसु पासवणुच्चारभूमीओ तेसु न चक्खुक्खेवो जो तमऽपडिलेद्दियं बुद्धा बिन्ति । सम्मं न चक्खुखेवो जो दुप्पडिले हियं तं तु वत्थंचलाइणा पुण सेखाई पमञ्जणाविरहो । सम्ममपमज्जियं पुण तं चिय दुपमञ्जियं जाण
।। १ ।।
॥ २ ॥ ॥ ३ ॥
|| 9 || || 2 || ॥ ९॥
१० ॥ तहाहि
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१६ ।।
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१७ ॥
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सम्मं जहागमं अणणुपालणं एवमाहु समयविऊ । किर पढमपोसहम्मि अस्थिरचित्तत्तणेण मिही अभिलसह किं पि आहारजाइयं अहब पारणादिवसे । तं सविसेसं कारेइ ही ! छुहाए किलन्तो ति बीए य पोसहम्मी सिंचह उबट्टई अहव देहं । तइयम्मि पोसहे पुण पत्थर कामे व भोगे वा तुरियम्मि पोसहम्मि वावारह किं पि गेहवावारे । एवमणाभोगाई भावाओ हुंति अइयारा एवं मुणिणा सप्पवचे पणीए पोसहविहाणे खेमंकरो नाम सावओ ईहा ऽपोहाइवससमासाइयजाईसरणो 'होउ, पतं
॥ १९ ॥
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पौषधयते ब्रह्मदेवकथानकम्
४४ ।
॥३१६॥

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