Book Title: Kaharayana Koso
Author(s): Devbhadracharya, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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देशावकाशिकवते पवनञ्जयकथानकम् ४३।
देवभहसरि-मावा वचामि ?' ति संसयावन्नो वि 'जइ पुण पवणंजओ वि एवं विहवसणग्घत्थो भविस्सई' त्ति धरियचित्तावट्ठभो पविट्ठो रयविरइओ णीए नियघरं । दिह्रो जणगाइजणो । पच्छचनिसिपवेस-मुहच्छायाइणा मुणियतम्मज्झेण वि पिउणा पुच्छिओ परिभमणवत्तं ।
खलियक्खराए पसरंतमन्नुभरनिब्भराए वाणीए । तह तेणुत्ता बत्ता जहा पिआ सोगिओ भणइ कहारयणवच्छ ! अविभावियाणं कजाणं नूण कीरमाणाणं । एस च्चिय होइ गई संतप्पेजासि मा एत्तो
॥ २ ॥ कोसो।।
तेणेव बुद्धिमता मंतं पिव चित्तवित्तिमवि दु । गोचिंति न बिंति न जंति विकिय माणमलणे वि ।।३।। विसेसगु
अइरहसवसारंभियविहडियकजस्स माणिणो गरुयं । हिययंतो सल्लं पिव न समइ दुक्खं खुडुकंतं ॥ ४ ॥ माहिगारो।
वच्छ ! बरं मरणं चिय पढमं चिय अहव जम्मणाभावो । भावे वा इत्थितं मा माणविहंडणा एवं ॥ ५ ॥ ॥३१॥
तेणं पयंपियं ताय ! किं पृण एत्तो वि जुञ्जए काउं? । जइ दूरमणुचियमिमं ता पुण बच्चामि अन्नत्थ ॥६॥ पिउणा वुत्तं हो! होउ इण्हि निहुयत्तमायरसु मुंच । कुबियप्पजालमफलं चुज्झसु नियकम्मपरिणामं ॥७॥
एवं खुत्तेण य तेण 'दिवमत्थए सिविऊणावमाणपयं, महामुणिणे व सवंसहत्तं पडिवजिय, सो रहो रयणिवलेणेव गोउरपञ्चासनपएसपुवमुक्को परियत्तिऊण नीओ नियघरे । बीयदिणे वित्थरियतकरावहरियधणाइवचानिसामणेणं सो हसिओ
१णत्थो सं० । एवंविधव्यसनग्रस्तः ॥ २ णवुत्तं प्र० ॥ ३ पिओ सो सं० ॥ ४ 'द्धिमन्ता मन्तं पिव प्र० ॥ ५ विक्रियां मानमर्दनेऽपि ॥ ६ न शाम्यति दुःसं सटरकुर्वत् ॥ ७दा हो सं०। भो ! भवतु इदानीं निशतवमाचर ॥ ८ देख प्र. ॥ ९ "णिणो व्य प्र० ॥ १० परावृत्य ॥ ११ "रिया तकरावहरियषणाइवत्ता । तन्निसाम प्र० ॥
*SARILAR
॥३१॥
XMARAHAR
वि तत्थेव संभविहि ति । सवसंवाहं काऊण तित्थजत्ताववएसेण गतो सो तत्थ । पत्थावे य पयवा जत्ता । सो वि पवणंजओ तं कालं हेच्छमागच्छतो
न मुणइ मग्गामग्गं बुज्झइ य न भौविरं महालाभं । जइ वि न पचभिजाणइ तइसनिवासिलोगं च ॥१॥ तह वि चिरञ्जियसुहकम्मभिच्चदंसिञ्जमाणमग्गो छ । सुस्सउणहरिसियमणो कमेण तं तित्थमणुपत्तो ॥ २ ॥ जइ वि न चक्खु पि हु खिवइ अनदेवेसु मोत्तु जिणमेकं । कोऊहलेण तह वि हु तेब्भवणं पेहए जाव ॥३॥ ताव महप्पा बहुलोयवयणपेहणवसेण वक्खित्तो । सो सस्थाहो अविभाविऊण भुवि मुक्ककमकमलो ॥ ४ ॥ पंक्खुलिऊण पडतो धरिओ पवणंजएण सकरेण । अइदक्खयाए करुणाभरनिभरभरियहियएण ॥ ५ ॥ हूं एसो सो त्ति विभाविरेण हरिमुल्लसंतवयणेण | सत्थाहिवेण नीतो निययावासम्मि सो तत्तो
॥ ६॥ गोरेवसारं भुंजाविऊण पुट्ठो य वच्छ ! कत्तो तं ? । किं वा तुज्झं नाम ? आगमणं किंनिमित्तं च ॥७॥ तेणं पयंपियं कोउगेण देसावलोयणणिमित्तं । आओ म्हि कलिंगाओ नाम पवणंजओ य ममं ॥८॥ तो नेमित्तियनिद्दिट्टवयणसंवाइणी गिरं सोचा । निरुवमरूयसिरिं पिहु पलोइउं जायपरितोसो
सो एस कप्परुक्खो स एस पउमो महानिही सक्खा । सो एस गेहचिंतागरुयभरुद्धरणधोरेओ ॥ १० ॥ १शीघ्रम् ॥ २ भवितारम् ॥ ३ तद्वचनं प्रेक्षत ॥४पक्वि ' खं० प्र० । व्याक्षिप्तः ॥ ५ पृथ्व्याम् ॥ ६ प्रस्खल्य ॥ ७ स्वकरण ।। ८ विभावयित्रा ॥ ९ गौरवसारम् ॥ १० आयातोऽस्मि ॥

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