Book Title: Jain Tattva Darshan Part 01
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 20
________________ । (2) काव्य संग्रह DOO || A. प्रार्थना मैं जैन हूँ, माता-पिता का विनय हमेशा करूं, उनका कहना मानकर, उनके हृदय को खुश करूं ।।1।। मैं जैन हूँ, करू रोज पूजा प्रभु की, भक्ति भाव से, नवकारशी और चौविहार, कायम करू उल्लास से ।।2।। मैं जैन हूँ, जिनवाणी से, मेरे हृदय-मन को भरूं, नई-नई गाथा रोज करके, सूत्रों को मैं याद करूं ।।3।। ___ मैं जैन हूँ, कागज पर थूकू नहीं और चलु नहीं, खाने की वस्तु को कभी, मैं कागज पर रखें नहीं ।।4।। मैं जैन हूँ, नवरात्रि, गणपति में कभी जाऊँ नहीं, फोडु नहीं पटाखे, फूटते हुए भी देखुं नहीं ।।5।। मैं जैन हूँ, मौज शौक के लिए धर्म को छोडूंगा नहीं, सरकस, सिनेमा, विडियो, टी.वी., मैं देखूगा कभी नहीं ।।6।। 16 B. प्रभु स्तुतियाँ दर्शनं देव देवस्य, दर्शनं पाप नाशनं ।। दर्शनं स्वर्ग सोपानं, दर्शनं मोक्ष साधनं ।।। 'सरस शांति सुधारस सागरं, शुचितरं गुणरत्न महागरं। भविकपंकज बोध दिवाकर, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरम् ।। प्रभु दरिसण सुख संपदा, प्रभु दरिशन नवनिध । प्रभु दरिशनथी पामिए, सकल पदारथ सिद्ध ।।। C. श्री पार्श्वनाथ जिन चैत्यवंदन आश पूरे प्रभु पासजी, तोडे भवपास, वामा माता जनमीया, अहि लंछन जास।। 1 ।। अश्वसेन सुत सुखकरूं, नव हाथनी काया, काशी देश वाराणसी पुण्ये प्रभु आया ।। 2 || एकसो वरस, आउखु ए, पाली पासकुमार, पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार ।। 3 || 18

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