Book Title: Jain Tattva Darshan Part 01
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 48
________________ 0.00.. UU900 नवपद का ध्यान करते-करते अग्निज्वालाएँ बुझ गई, देवों ने आकर उसे सिंहासन पर बिठाया और देवों ने राजा को उल्टा गिरा दिया। राजा के मुँह से खून बहने लगा। ऐसा चमत्कार देखकर राज्यसभा और ब्राह्मण पंडितों वगैरह ने अमरकुमार को महात्मा समझकर उसके चरणों की पूजा करने लगे और राजा को होश में लाने की विनती की। अमरकुमार ने नवकार मंत्र से पानी मंत्रित करके राजा पर छिड़का । राजा होश में आ गया। श्रेणिक महाराज ने खड़े होकर कुमार की सिद्धि को देखकर अपना राज्य देने के लिए कहा। अमरकुमार ने कहा, मुझे राज्य की कुछ जरूरत नहीं है। मुझे तो संयम ग्रहण करके साधु बनना है। लोगों ने अमरकुमार का जयजयकार किया। धर्म ध्यान में लीन होते ही अमरकुमार को जाति स्मरण ज्ञान अर्जित हुआ और पंचमुष्टि से लोच करके, संयम ग्रहण किया और गाँव के बाहर श्मशान में जाकर काउस्सग्ग (ध्यान) लगाकर खड़े रहे। ___माता-पिता ने यह बात सुनकर मन में सोचा, "राजा आकर स्वर्णमुद्राएँ वापिस ले लेंगे।' इसलिए धन आपस में बाँट लिया और कुछ धरती में गाड़ दिया। अमरकुमार की माँ को पूर्वभव के बैर के कारण रात्रि में नींद न आने से शस्त्र लेकर ध्यानस्थ खड़े अमरकुमार के पास पहुंची और अमरकुमार की नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं हत्या कर दी। नसी आयपियाण शुक्लध्यान में रहकर अमरकुमार काल अनुसार बारहवें देवलोक में अवतरित हुए, वहाँ बाईस सागरोपम आयुष्य भोगकर महाविदेह में जन्म लेकर केवलज्ञान पायेंगे। अमर की हत्या करके माता हर्षोन्मत्त होती हुई चली जा रही थी, रास्ते में शेरनी मिली। शेरनी भद्रा माता को चीर-फाड कर खा गई। वह मरकर छट्ठी नरक पहुँची, उसे बाईस सागरोपम आयुष्य भुगतना बाकी है। बच्चे अमर को अग्नि में चला। नमो उवज्झायमा नमो लोए सव्व साहूणं एसो पच नमुकारो सब पाचप्पणासणी मंगलाण सम्वनि पदम हवड़मगलं . . . .

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