Book Title: Jain Tattva Darshan Part 01
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 35
________________ B. पच्चक्खाण नवकारसी उग्गए सूरे, नमक्कार सहिअं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहि वत्तिआगारेणं वोसिरइ। C. गुरू वंदन विधि गुरु भगवंत जब अपने आसन पर बैठे हुए हो, तभी वंदन करना चाहिए। पहलेदोखमासमण देना । "इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसिहिआए मत्थएण वंदामि" । (दो खमासमण के बाद खड़े रहकर हाथ जोडकर बोले ) 'इच्छकार सुहराइ ? (सुहदेवसि?) सुखतप ? शरीर निराबाध? सुखसंजम जात्रा निर्वहोछोजी ? स्वामी ! शाता छेजी ? भात पाणीनो लाभ देजोजी ।" (अगर गुरु महाराज पदवी धारी हो तो ही एक खमासमण फिर से देना, बाद में खडे हो कर बोले) “इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अब्भुट्टिओमि अब्भिंतर राइअं (देवसिअं ) खामेउं ? इच्छं, खामेमि राइअं (देवसिअं) । (बाद में घुटने जमीन पर टेककर दाहीने हाथ सीधा सामने जमीन पर रखना और बाए हाथ को मुँह पर रखकर सिर झुकाकर नीचे का सूत्र बोले) जं किंचि अपत्तिअं - परपत्तिअं, भत्ते-पाणे, विणए-वेयावच्चे, आलावे-संलावे, उच्चासणे-समासणे, अंतरभासाए-उवरिभासाए जं किंचि मज्झ विणयपरिहीणं, सुहुमं वा बायरं वा, तुब्भेजाणह अहं न जाणामि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥” बाद में एक खमासमण देकर यथाशक्ति पच्चक्खाण लेना । “इच्छकारी भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण देजो जी ? फिर एक खमासमण देना । 33

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