Book Title: Jain Lakshanavali Part 2
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 19
________________ कर्मद्रव्यभाव] ३२१, जैन-लक्षणावली कर्मफलचेतना प्राप्त होते हैं तब इतने काल में उसका कर्मद्रव्य- तच्च मूलोत्तरोत्तर प्रकृतिभेदभिन्नं बहुविकल्पबन्धोपरिवर्तन पूरा होता है। दयोदीरणसत्त्वाद्यवस्थं ज्ञानावरणादिकर्मस्वरूपं समकर्मद्रव्यभाव-कम्मदव्वभावो णाणावरणादिदव्व- वधानेर्यापथतपस्याधाकर्मादि वर्णयति। (गो. जी. कम्माणं अण्णाणादिसमुप्पायणसत्ती । (धव. पु. १२, जी. प्र. टी. ३६६)। ८. कर्मबन्धोदयोपशमोदीरणा निर्जराकथकमशीतिलक्षाधिककोटिपदप्रमाणं कर्मज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मों में अज्ञानादि उत्पन्न करने प्रवादपूर्वम् । (त. वृत्ति श्रुत. १-२०)। की जो शक्ति होती है उसे तव्यतिरिक्त कर्मद्रव्य कर्म को बन्ध, उदय, उपशम एवं भाव कहते हैं। निर्जरा रूप अवस्थाविशेषों का, अनुभव व प्रदेशों कर्मद्रव्यसंसार-कर्म द्रव्यसंसारो ज्ञानावरणादि- के आधारों का तथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट विषयः । (चा. सा. पृ. ८०)। स्थिति का निर्देश किया जाता है उसे कर्मप्रवादपूर्व ज्ञानावरणादिरूप पाठों कर्मों के पुद्गल परमाणों कहते हैं। को कर्मद्रव्यसंसार कहते हैं। कर्मफलचेतना-१. वेदंतो कम्मफलं सुहिदो दुहिदो कर्मनिषेक -देखो कर्मदलिकनिषेक । दु हवदि जो चेदा। सो तं पुणो वि बंधदि बीयं कर्मनारक-कम्मणेरइयो णाम णिरयगदिसहगद- दुक्खस्स अट्टविहं ।। (समयप्रा. ४१९) । २. कम्माणं कम्मदव्वसमूहो। (घव. पु. ७, पृ. ३०) ।। फलमेक्कोXXX। चेदयदि Xxx॥ (पंचा. नरकगति के साथ आये हए कर्मद्रव्य के समह को का. ३८)। ३. ज्ञानादन्यत्रेद वेदयेऽहमिति चेतनं कर्मकर्मनारक कहते हैं। फलचेतना। (समयप्रा. अमृत. टी. ४१७); एके कर्मपुरुष-कर्म अनुष्ठानम्, तत्प्रधानः पुरुषः कर्म- हि चेतयितारः प्रकृष्टत रमोहमलीमसेन प्रकृष्टतरज्ञापुरुषः कर्मकरादिकः । (सूत्रकृ. शी. वृ. ४, १, ५७)। । नावरणमुद्रितानुभावेन चेतकस्वभावेन प्रकृष्टतरवीअनुष्ठान-प्रधान कर्मयोगी पुरुष को कर्मपुरुष कहते हैं। यन्ति रायावसादितकार्य-कारणसामर्थ्याः सुख-दुःखरूपं कर्मप्रवाद -१.बंधोदयोपशमनिर्जरापर्याया अनुभव- कर्मफलमेव प्राधान्येन चेतयन्ते । (पंचा. का. अमृत. प्रदेशाधिकरणानि स्थितिश्च जघन्य-मध्यमोत्कृष्टा व. ३८); निर्मलशुद्धात्मानुभूत्यभावोपाजितप्रकृष्टयत्र निर्दिश्यते तत्कर्मप्रवादः। (त. वा. १,२०, १२, तरमोहमलीसेन चेतक भावेन प्रच्छादितसामर्थ्यः सन्नेपृ. ७६; धव. पु. ६, पृ. २२२)। २. कम्मपवाद को जीवराशि: कर्मफलं वेदयति । (पंचा. का. जय.व. णाम पुवं वीसह वत्थूणं २० चत्तारिसयपाहुडाणं ३८)। ४. उदयागतं कर्मफलं वेदयन् शुद्धात्मस्वरूप४०० एगकोडि-असीदिलक्खपदेहि १८००००००। मचेतयन् मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयनिमित्तन यः सुखिअट्टविहं कम्मं वण्णेदि । (घव. पु. १, पृ. १२१); तो दुःखितो वा भवति स जीव: पुनरपि तदष्टविध ३. अथवा ईर्यापथकर्मादिसप्तकर्माणि यत्र निर्दिश्यन्ते कर्म वध्नाति । कथंभूतम् ? बीजं कारणम् । तत्कर्मप्रवादम् । (धव. पु. ६, पृ. २२२)। ४. कम्म- कस्य ? दुःखस्य । इत्येकगाथया कर्मफलचेतना पवादो समोदाणिरियावहकिरियातवाहाकम्माणं व्याख्याता । कर्मफल चेतना कोऽर्थः इति चेत् वण्णणं कुणइ। (जयध. पु. १, पृ १४२)। ५. स्वस्थभावरहितेनाज्ञान भावेन यथासम्भवं व्यक्ताअशीतिलककोटिपदं कर्मणां बन्धोदयोदीरणोपशम- व्यक्तस्वभावेनेहापूर्वकमिष्टानिष्टविकल्परूपेण हर्षनिर्जरादिप्ररूपकं कर्मप्रवादम् १८००००००। (श्रत- विषादमयं सुख-दुःखानुभवनं यत् सा बन्धकारणभूता भक्ति टी. १२, प. १७६)। ६. कर्मप्रवादमष्टमं कर्मफलचेतना भण्यते । (समयप्रा. जय. वृ. ४१६)। ज्ञानावरणादिकं कर्म प्रकृति-स्थित्यनुभाग-प्रदेशादि- ३ अतिशय बलवान् वीर्यान्तराय के निमित्त से जिन भिर्भदैरन्यैश्चोत्तरोत्तरभेदैर्यत्र वर्ण्यते तत्कर्मप्रवादम. जीवों (स्थावर) के कार्य करने का सामर्थ्य विनष्ट तत्पदपरिमाणमेका पदकोटी अशीतिश्च सहस्राणीति। हो रहा है वे अतिशय तीव्र ज्ञानावरण के उदय से (समवा. अभय. वृ. १४७, पृ. १३१)। ७. कर्मणः प्रभावहीन होकर जो चेतक स्वभाव मोह की प्रवादः प्ररूपणमस्मिन्निति कर्मप्रवादमष्ट में पूर्वम। उत्कटता से मलिन हो रहा है ऐसे चेतक स्वभाव से ल. ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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