Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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जैनकणार
जैनकथा रत्नकोष नाग पहेलो. शाकना नियम लीधा, वडा पूर्णादिक टाली बीजा धान्य शाकना नियम लोधा, आकाशढं पाणी टाली बीजा पाणी पीवाना नियम लीधा, एलची लविंग कस्तूरी कंकोल कपूर जायफल, ए पांच वस्तुयें करी संस्का रित जे तंबोल ते टोलीने बीजा तंबोल खावाना नियम लीधा, जे.कांश प्रथमथीज घरमां वस्तु , घरवखरी ले तेनी उपरांत परिग्रह राखचाना नियम कस्या. ए पांचमा तथा सातमा व्रतसंबंधी वात कही, तेम बीज़ा प्रण सर्व व्रतना यथायोग्य नियम संश् श्रीमहावीरने वांदीने धेर आव्यो. शि वनिंदा स्त्रीये पण श्रीमहावीर पासें श्रावी तेमज आनंदनी मे श्राविकाधर्म थंगीकार करखो. बेदु जणायें चौद वर्ष पर्यंत ए रीतें श्रावक्रधर्म पाल्यो. जो कोइ देव मनमां वैषधरिचलाववा यावेतो पण चले नहि. एवो निश्चल थयो. __ पनी आनंदश्रावकने प्रतिमा आराधवांनो मनोरथ थयो, तेवारें सर्व कुटुंबनी आझा लश्ने कोलागयामें पौषधशाला करावी. महोटा पुत्रने घ रनो नार सोंपी, सर्व सऊनने जमांडी हकीगत कहीने पौषधशालायें ज
महातप करतो थको अगीयार प्रतिमाना आराधन करवामां प्रवत्यो. ॥ उक्तं च ॥ दंसण वय सामाश्य, पोसह पडिमा अबंन सचित्ते ॥ आरंन पेस नदिछ, वजए समणनूए अ॥ १ ॥ एवी रीतें प्रतिमानुं आराधन क रता थका आनंदन शरीर अत्यंत मुबल थयु: ___ एम धर्मजागरण करतां अनशननो मनोरथ उपनो, तेवारें संजेषणा करी अनशन लीधु, तेपनी अवधिज्ञान उपy. एवामां श्रीमहावीरस्वामी आवी नद्याने समोसस्या, तेवारें श्रीगौतमस्वामी बन्ने पारणे निदाने अ थै नगरमां जश् अन्न पाणी वहोरीने पाबा वलतां कोलागग्राम तरफ घणा लोक जातां देखी गौतमस्वामीयें पूङयुंके या लोको क्यां जाय ? तेवारेको इएके जवाब आप्यो के हे महाराज! आनंद श्रावकें अनशन कयुं ,तेमने वांदवा जाय ले ते सांजली श्रीगौतमस्वामी पण आनंदश्रावकने वंदाववा माटें तिहां गया. तेमने याव्या जोश्ने आनंदश्रावक अत्यंत हर्ष पाम्यो थको कहेवा लाग्यो के हे महाराज ! ढुं ऊठी शकतो नथी माटें तमें दक डा पधारो तो थामना पगने ढुं महारा मस्तकें करी फरसुं ! ते सांजली श्रीगौतमस्वामी ढकडा बेठा. तेवारें आनंद श्रावकें त्रिधा शुझे करी मस्तक पगें लगाडीने वांद्या, अने पूब्युं के महाराज ! गृहस्थने अवधिज्ञान उप

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