Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 320
________________ 307 जैनकथा रत्नकोष नाग पदेलो. ॥.मबारक मुख मयगल गलिया, राजा घरघर हिं // ए कज यंते पण गज बांध्या, रानहोकणं खंमें॥ ५॥च०॥ अर्थः-आ कलिकालना जीव स्वल्पपुण्यवान दे, माटे मन्चरसमान जाणवा ते मंडर समानं मिथ्यात्वी जीवरे ते मयगत समान महोटा जिनधर्मने गति जाय तथा जीवरूप राजा ते कर्मने वश रह्यो थेको चोराशी लदा जीवा योनिरूप घरघरनेविषे हिंझे ले भ्रमण करे बे तथा एक जीपना एकज श रीर रूपीयां यांनाने विषे पांच इंख्यिरूपीया पाँच हाथी बांध्या मे ते म दोन्मत्त थका सांकलोना बंधने तोडी रह्या बे तथा अवतरूपी रानः रण तेव्रतरूपी धान्यनाकपनी खंमना करे // 5 // // पाउनारी मलि एक सुत जायो बेटे बाप वधाख्यो / त्रों र वस्या मंदिरमायावी, घरथी साह कढायो॥ 6 // च०॥ अर्थ--कर्मनी मूलप्रति आठ जे तेज आउ नारी जाणवी. तेणे संसा-- ररूपी एक पुत्र पेदा कीधो ले तथा कपटरूपीया बेटायें मोहरूपी पिताने वधारी एटले महांटो कस्यो छे तथा विपयरूपी चोर ते कायारूप मंदि रमां आवी वस्या , तेणे शीलसाहसिकरूपी महोटा शादुकार तेने घर मांथी काढी मूक्या वे // 6 // // एक अग्नि संघलो जल शोपे, वेश्या धूंघट काढे // कुलवं ती कुल लाज त्यजी करी, घर घर बाहिर हिंमे॥७॥च०॥ अर्थः-एक तृमारूपी अनियें संतोपरूपी सर्वजल पीई रे तथा माया कपटरूपिणी वेश्या ते मीठा वचनरूपयां बूंघट काहाडे ने तथा सर्व विर तिरूप कुलवंत स्त्रीय पोतानी लाजनो त्याग करीने असंयमरूपीया अनेक थानक ने तेज अनेक घर जाणवां.तप घरघरने विषे बाहार फरति हिंमेले. // ए परमारथ ज्ञान सुनी करी, आतम ध्यान सुध्यावो // विनयसागर मुनि इम उपदेशे,धर्ममति मन लावो॥७॥०॥ अर्थः-ए वातनो ज्ञानमय परमार्थ जे श्रीवीतरागनां वचन, तेने संना रीने आत्मध्यान ध्यावाने प्रवर्तों,विनयसागरजी मुनि एवी रीतें उपदेशक रेले के, धर्मनी बुद्धि तमारा मननेविषे आणो,के जेथकी जन्म, जरा अ ने मरणना फुःखथी विमुक्त थ मुक्तिनां सुख पामो // // इति //

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