Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 295
________________ श्री गौतमष्टचा अर्थसहित. २८३ एकदा धन कमावा सारु, देशांतरें चाव्यो, तिहां लक्ष्मी मेलववांना घणा उपाय करना, परंतु कर्मयोगे दरिीज रह्यो हवे तिहां एक पएमुख नामें देव बे, तेनो साचो परतो हे, तेनी खागल धन मेलववा माटें उपवास क बेगे. सातमे दिवसें देव प्रत्यक्ष य बोल्यो के तुं शा मादें लांघण करे बे? लेवारें दरियें कयुं के लक्ष्मीने अर्थे करूं बुं. देवतायें कयुं लक्ष्मी म लव तुहारा कर्ममां लखी नथी. दरि बोल्यो के तो महारुं इहांज मरण था. एवो तेनो-हड जालीने देवतायें कयुं प्रजातें इहां सोनानो मोर ना चशे, ते एक पिच सोनानुं मूकशे, ते तुं लेजे. एम कही देव दृश्य थयो. प्रजातें सोनानुं पिव मल्युं, एम नित्यप्रत्यें एक पिच देतां तां वली दरिने कुबुद्धि ऊपनी ने विचायुं जे या जंगलमांहे केटला दिवस रही यें ? माठें या मोरने पकड़ी एक वखतेंज एनां सर्व पीठां लइ लहीयें. एम चिंतंवी मोरने पकड्यो, के तरत मोर फींटीने कागडो थइ गयो. देवतायें व दरीने पाटुप्रहारें माखो, तेथी पडि गयो. प्रथमथी जेटला मोरनां पीडां लीधां हतां, तेटलां सर्व कागडानां पीठां थइ गया. जे माटें कबे के “बुद्धिः कर्मानुसारिणी ॥ दोहा ॥ कतावल कीजें नही, कीधे काज विलास || मोर सोनानो कागडो, करी हुई घरदास ॥ १ ॥ प पोतेंज पोताने निंदतो थको पापात ख़ावा माटें पर्वत ऊपर च ड्यो, तिहां एक साधुने दीवा, तेवारें मनमां विचाखुं जे. एमने धन मेलव वानो हुं उपाय हुं ! एम चिंतीने तेमने वांद्या, तेवारें ऋपियें कंत्युं के तें देवनुं सधन करयुं, तिहां मोरंनो काग थयो. तेथी हमणां. इहां ऊंपा पात करवा खाव्यो बो. ते सांगली यार्य पामी विचायुं जे जून या क पिनुं कहेतुं ज्ञान बे ! पढी साधुने कहेवा लाग्यो के महाराज ! मने धन मेलववानो उपाय कहो. ज्ञानीयें कयुं के तें पूर्वला नवमां कोइ नियम पा व्यो नथी, विनय कीधो नथी ने कोइने दान पण दीधुं नथी, तेनें योगें दरी थयो बो. एवी वात सांजलतां जातिस्मरण ज्ञान कपन्युं; तेथी पू वला जव सर्वे दीठा. तेवारें वैराग्य पामी दीक्षा लीधी. तेने सारी रीतें या राधीने देवलोके देवता थयो. ए दरिडीपणा ऊपर निष्पुण्यनी कथा कही ॥ दवे चोत्रीशमी पृष्ठानो उत्तर एक गाथायें करी कहे बे. ॥ गाथा ॥ जो पुल चाइ विण, य जू चारित गुणसया इन्नो ॥ सो जण

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