Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 01
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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शए४
- जैनकथा रत्नकोष नाग पहेलो. 'वेदु देवलोकनां सुख पाम्या. ए निर्दयता कपर कर्मणहालीनी कथा कही ॥
हवे एकतालीशसी तथा बेहेंतालीशमी प्रजाना उत्तर,बे गाथायें कर कहे जे:. ॥ गाथा ॥ सरल सहावो धम्मि, व माणस जीव ररकण परोय ॥ देव गुरुसंघनतो, गोयमवस्सियो हो ॥ ५५ ॥ कुडिलसहावो पाव, प्पि अजीवाण हिंसण परोष ॥ गुरु देवय पडिणी, अचंत कुरूव हो ॥५६॥
नावार्थ:-जे पुरुष बत्रदंनी पेठे सरलस्वनावी होय अने धर्मने निषे जेनुं चित्त होय तथा जे मनुष्य जीवनी रक्षा करवामां तत्पर.होय तथा जे. देव, गुरु अने संघनी नक्ति करवामां तत्पर होय, हे गौतम ! ते जीव रूप वान थाय ॥५५॥ तथा जे जीव स्वनावें कुटिल होय एटले कुटिलस्वनावी होय अने पापप्रिय होय, एटले तेने पाप करवुज गमे, अने जीवनी हिंसा करवामां तत्पर होय, तथा देव बने गुरुनी ऊपर क्षेष. वहे,देवगुरुनो प्रत्य . नीक होय ते पुरुष मरीने अत्यंत कुरूपवंत थाय ॥५६ ॥ जेम पाटणम गरमां देव सिंहशेठनो-पुत्र जगसुंदर सर्वलोकोने मन गमतो रूपवंत थयो. अने तेनोज बीजो ना असुंदर हतो.ते कालो कूबडो उन गी फुःस्वर लंब कंठो, महोटा पेटवालो, कुरूपो थयो. ए वेदुनाश्नी कथा कहे :
पाटण नगरें देवसिंहशेठ धनवंत वसे ले. तेने देवश्रीनामें स्त्री जे, ते स रल अने स्नेहाली ले. तेणे एकदा पाउली रात्र एक आंबानो वृद शाखा माल फूलें नरेलो आकाशथी कतरतो पोताना मुखमांहे संचरतो स्वप्नामां दीतो. एटलामां जाग्रत थइने पोतांना भरतारने ते सुपनानी हकीगत कही. जरतारें सांजलीने स्त्रीने कह्यु के तुझने फलवंत गुणवंत आंबानी पेठे अनेक जीवोनु थाधारनूत एवं पुत्ररत्न थाशे. ते सांजली स्त्रीयें हर्षवंत थ. अनुक्रमें पूर्ण दिवसें लदणवंत रूपवंत पुत्र जन्म्यो. तेना पितायें वधामणां कीधां कुटुंब जमाडी. दीघां वस्त्रने साडी. हरख्यां बापने माडी. एनुं जग सुंदर नाम यथागुणे दाधुं. शेग्नुं वंबित काम सीधुं. नीसालें नएयो. क ला शीख्यो, जाग्य, सौनांग्य, विनय, विवेक, चातुर्य, औदार्य, गांनीर्य, धैर्यादिक गुणवंत थयो. ते यौवनवय पाम्यो तेवारें तेणें अनेक कन्या साथें पाणिग्रहण कीg, देव गुरु संघनी नक्ति करे, जिनधर्म धादरे, दान देश पुण्यनंमार नरे, दीन उःखीनो उधार करें, एवो गुणवंत ते कुमार थयो.

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