Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ ६. जैन दर्शन और विज्ञान में अमूर्त अचेतन विश्व मीमांसा २३७-२६४ (१) जैन दर्शन का दृष्टिकोण २३७-२४४ द्रव्य-मीमांसा २३७-आकाश : लोक और अलोक २३७-धन और ऋण ईथर २३८काल द्रव्य २४१ (२) वैज्ञानिक दृष्टिकोण २४४-२५६ आपेक्षिकता के सिद्धान्त से पूर्व २४४-आपेक्षिकता के सिद्धान्त का आविष्कार २४७-आपेक्षिकता के सिद्धान्त के बाद २४८-आपेक्षिकता के सिद्धान्त का दार्शनिक पक्ष २५२-उपसंहार २५५ (३) तुलनात्मक अध्ययन २५६-२६६ न्यूटन और जैन दर्शन २५७-आपेक्षिकता का सिद्धान्त और जैन दर्शन २५७उपसंहार २६३ अभ्यास-२६४ ७. विश्व का परिमाण और आयु.. २६५-२९९ (१) जैन दर्शन : विश्व का परिमाण २६५-२६९ विश्व का आकार २६५-विश्व कितना बड़ा है २६५-गणितीय विवेचन २६५-दिगम्बर परम्परा २६६-श्वेताम्बर परम्परा २६६-दो परम्पराओं का मतभेद और समीक्षा २६६-आधुनिक गणित पद्धतियों के प्रकाश में २६८-रज्जु का अंकीकरण २६९ (२) जैन दर्शन : विश्व काल की दृष्टि से २६९-२७३ विश्व की अनादि-अनन्नता २६९-काल-चक्रीय विश्व-सिद्धान्त २७०--वर्तमान युग और भविष्य २७२-उपसंहार २७३ (३) वैज्ञानिक दृष्टिकोण : विश्व का परिमाण २७३-२७९ आपेक्षिकता के सिद्धान्त से पूर्व २७३-आपेक्षिकता के सिद्धान्त द्वारा समाधान २७४विश्व का परिमाण : स्थिर या बढ़ता हुआ? २७८ (४) वैज्ञानिक दृष्टिकोण : विश्व की आयु २७९-२८७ सादि और सान्त विश्व के सिद्धान्त २७९--अनादि और अनन्त विश्व के सिद्धान्त २८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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