Book Title: Jain Darshan aur Vigyan
Author(s): Mahendramuni, Jethalal S Zaveri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ ५. जैन दर्शन और विज्ञान : सत्य की मीमांसा... २१०-२३६ (१) नियमवाद २१०-२१८ : नियमवाद : जैन दर्शन की मौलिक प्रस्थापना २१० - एकान्तवाद से बचने का सिद्धान्त २१०- (अ) सन्दर्भ : जन्म और मृत्यु का २११ - (ब) संदर्भ : रोग का २११ - ( स ) संदर्भ नींद का २१२ - (द) संदर्भ : अमीरी और गरीबी का २१४ - भविष्यवाणी मिथ्या क्यों होती है? २१४-ज्योतिर्विज्ञान : एक नियम २१५ - प्रभाव सौरमण्डल के विकिरणों का २१६-(ई) संदर्भ : भाव का २१६ - मूड क्यों बिगड़ता है? २१७ - नियमन का सिद्धान्त है नियमवाद २१७ - आधुनिक विज्ञान में नियमवाद २१७ (२) ईश्वरवाद : कर्मवाद २१८-२२५ सृष्टि है परिवर्तनात्मक २१८ - सृष्टि का नियन्ता कोई नहीं २१८ - सृष्टि का नियमन नियम के द्वारा २१९ - कर्तृत्व : भोक्तृत्व २१९ - प्रयोजनवादी सृष्टि २९१९ - एकोऽहं बहु स्याम् २२०-ईश्वरवाद : धार्मिक दृष्टिकोण २२० - ईश्वरवाद : नैतिक दृष्टिकोण २२० - कर्मवाद के तीन सिद्धान्त २२१ - अधिकार है परिवर्तन एवं प्रगति का २२१–परिवर्तन का आधार २२२ - एकांगी धारणा २२२ - कर्म का कर्तृत्व नहीं है-मिथ्या अवधारणाएं २२३ - कर्मवाद में पुरुषार्थ का मूल्य २२३ - महावीर पुरुषार्थवाद के सशक्त प्रवक्ता २२३ - नियामक कौन ? २२४ - वास्तविक सच्चाई: व्यावहारिक सच्चाई २२४-आधुनिक विज्ञान २२५ (३) कार्यकारणवाद २२५-२३० प्रश्न निरपेक्ष सत्य का २२६ - अनादि परिणमन है निरपेक्षसत्य २२६ - निराधार भ्रम २२७-कारण के तीन प्रकार २२७ - सृष्टि के निर्माण का प्रश्न २२७ - उपादान मूल कारण है २२८–कार्यकारण सर्वत्र मान्य नहीं २२८ - जगत् : दार्शनिक जगत् का अहम प्रश्न २२९-हृदय जगत् क्या है? २२९ (४) अनेकान्तवाद - २३०-२३६ सरल है पर्याय का दर्शन २३० - दो दृष्टिकोण २३१ - ज्ञेय तत्त्व दो हैं २३१ - अनेकान्त और सम्यग् दर्शन २३२ - अनेकान्त के निष्कर्ष २३२ - शाश्वतवाद की समस्या २३२ - तर्क जैन आचार्यों का २३३- जैन दर्शन की भाषा २३४ - समन्वय की मौलिक दृष्टियां २३४-परिवर्तन : अपरिवर्तन २३५ - वैराग्य का आधार : परिवर्तनवाद २३५ - पर्याय कहां से आता है? २३५ - समाधान है अनेकान्त २३६ अभ्यास- २३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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