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में श्रुत, एकादश गणधरों ने प्राप्त करके संकलनपूर्वक ग्रंथों के आकार में प्रस्तुत किया
___प्राचीनकाल में श्रुतज्ञान' चौदह पूर्वो में अन्तर्भूत था। ये चौदह पूर्व उत्पाद पूर्व, अग्रायणीय पूर्व आदि नामों से प्रसिद्ध थे। ये सभी अंगों से पूर्व तीर्थंकरों द्वारा अभिहित होने से पूर्व' कहे गये । इन्हीं पूर्वो पर आधारित उपदेशों को विशिष्ट शक्ति सम्पन्न गणधर नाम-गोत्र, लब्धिशाली महापुरुषों ने सूत्ररूप में ग्रथित करके शिष्य-प्रशिष्यों तक पहँचाया। ये सभी बातें आगमों में ही कथित हैं। अन्य बाह्य प्रमाणों की अपेक्षा किये बिना स्वयं आगमों में ही विविध प्रसंगों में आगमों के प्रादुर्भाव का कथन हआ है। आगमों की संख्यागत बहुलता की दृष्टि से पूर्वाचार्यों की मान्यताओं में विभिन्नता आई और सम्प्रदायों का प्रवर्तन हुआ। तथापि मुख्य लक्ष्य में कोई भिन्नता नहीं आई, यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात है। ___'आगम' शब्द अनेक व्युत्पत्ति और परिभाषाओं से गौरवान्वित है ।आगम शब्द को कुछ विद्वान 'रूढ़' मानते हैं तो कुछ योगरूढ़' मानते हैं । रूढ़वादी परिभाषाओं के द्वारा अपनी भावना को व्यक्त करते हैं, जबकि 'योगरूढ़वादी' व्याकरणानुसारी व्युत्पत्तियों के आधार पर अपने विचारों को अभिव्यक्ति देते हैं । 'उपासकाध्ययन' में: आगम शब्द की परिभाषा इस प्रकार दी गई है• हेयोपदेयरूपेण चतुर्वर्ग-समाश्रधात्।
कालत्रय-गतानर्थान् गमयन्नागमः स्मृतः ।।१०० ।। ___ इसके अनुसार 'हेय और उपादेय रूप से धर्म, अर्थ, काम मोक्षरूप चतुर्वर्ग के समाश्रय से त्रिकालगत अर्थों का जो ज्ञान कराये वह आगम' कहा जाता है। आचार्य हेमचन्द्र ने 'अभिधान-चिन्तामणि-नाममाला' के देवकाण्ड में कहा है• राद्धसिद्धकृतेभ्योऽन्त आप्तोक्तिः समयागमौ।।
तथा स्वोपज्ञवृत्ति में स्पष्ट किया है कि
आगम्यत इति आगमः' अर्थात् 'सिद्धान्त, आप्तोक्ति, समय तथा आगम' में समानार्थक हैं।
अन्य धर्मावलम्बी आचार्यों ने भी आगम की परिभाषा और व्युत्पत्तियां इन्हीं के समान दी हैं। यथा- 'पातंजल योग दर्शन' के 'व्यास भाष्य' में - 'आप्तेन दृष्टोऽनमितो गऽर्थः परत्र स्वबोधसंक्रान्तये शब्देनोपदिश्यते, शब्दात् तदर्थ विषया वृत्तिः '' इसी को 'भोजवृत्ति' में आप्तवचनमागमः' कहकर पुष्टि की गई है।
....... यह है कि आगम स्मर्यमाण- कर्तक हैं, सार्ववर्णिक हैं, राजमार्ग हैं। एक ही तत्व के प्रतिपाद्यभूत उपक्रम को क्रियाशीलता की ओर केंद्रित करते हैं । आगच्छति परम्परया इति आगमः' अर्थात् जो सत्य-रहस्य परम्परा से आ रहा है, वही आगम है।
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