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उपर्युक्त परिभाषाओं में आप्त शब्द का प्रयोग हुआ है । प्रश्न यह उपस्थित होता है कि आप्त कौन? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जा सकता है कि जिन्होंने राग-द्वेष को जीत लिया है, वह जिन तीर्थंकर, सर्वज्ञ, भगवान, आप्त है और उनका उपदेश एवं वाणी ही जैनागम है, क्योंकि उनमें वक्ता के साक्षात् दर्शन एवं वीतरागता के कारण दोष की संभावना नहीं होती और न पूर्वापर विरोध तथा युक्ति बाध ही होता है ।
सम्पूर्ण आगम साहित्य को निम्नानुसार वर्गीकृत किया गया हैअंग, उपांग, मूलआगम, छेद आगम और प्रकीर्णक । अनुयोगों के अधार पर आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार है- ... चरण करणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग ।
विषय साम्य की दृष्टि से अपृथक्त्वालुयोग और पृथक्त्वानुयोग ये दो भाग किये गए हैं।
जहाँ तक आगम ग्रंथों की संख्या का प्रश्न है इस सम्बंध में मतैक्य नहीं है। श्वेताम्बर जैन परम्परा में मूर्ति पूजक परम्परा पैंतालीस आगम ग्रंथ स्वीकार करती है तो स्थानकवासी जैन परम्परा बत्तीस । दिगम्बर जैन परम्परा अपने आगम ग्रंथ इन दोनों परम्पराओं से अलग ही स्वीकार करती है । यहाँ इस विषय पर विस्तार से कुछ लिखना प्रासंगिक प्रतीत नहीं होता।
राष्ट्रसंत, जैन धर्म प्रभावक तीर्थोद्धारक कुशल प्रवचनकार, सिद्धहस्त लेखक, सरस कवि, प्रशांतमूर्ति, सरल स्वभावी, मृदुभाषी पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद्, विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी म.सा. की विविध विषयक अनेक पुस्तकें अभी तक प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें प्रवचन, कथा, काव्य, निबंध, व्याख्यां परक तो है ही, साथ ही जैन धर्मावलम्बियों के लिए नित्य उपयोग में आने वाली पुस्तकें भी सम्मिलित हैं । आचार्य भगवंत एक चिंतक भी हैं । उनका यह स्वरूप उनकी चिंतन प्रधान पुस्तकों में देखने को मिलता है। उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी करवाया है। इस प्रकार आचार्य भगवंत माँ भारती के भण्डार को समृद्ध करते जा रहे हैं।
यह मेरे लिए सौभाग्य का विषय है कि मुझे आचार्य भगवंत ने अपने नवीनतम ग्रंथ “जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन" का न केवल अवलोकन करने का अवसर प्रदान किया वरन, उस पर लिखने का भी अवसर दिया। वैसे जैन आगम साहित्य पर अद्यावधि बहुत कुछ लिखा जा चुका है। फिर भी प्रस्तुत ग्रंथ की अपनी कुछ अलग विशेषताएँ हैं, जो उसमें प्रतिपाद्य विषय को देखने पर स्पष्ट हो जाती हैं। . १. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पृष्ठ५-६ ..
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