Book Title: Jain Agam Sahitya Ek Anushilan
Author(s): Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashan Trust

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Page 312
________________ वृद्ध-वृद्ध अवस्था में दीक्षा ग्रहण करने वाले। श्रावक- धर्मशास्त्र सुनने वाले ब्राह्मण। ये, गौतम आदि उक्त साधु सरसों के तेल को छोड़कर नौ रसों-दूध, दही, मक्खन, घी, तेल, गुड, मधु, मद्य और माँस का भक्षण नहीं करते थे। उक्त व्रती साधुओं के अतिरिक्त और भी कुछ व्रती होते थे। उनके नाम इस प्रकार हैं दगवइय (उदक द्वितीय)- चाँवल को मिलाकर जल जिनका द्वितीय भोजन दगतइय (उदक तृतीय)– चाँवल आदि दो द्रव्यों को मिलाकर जल जिनका तृतीय भोजन है। दगसत्तम (उदक सप्तम)-चाँवल आदि छह द्रव्यों को मिलाकर जल जिनका सातवाँ भोजन है। दग एक्कारस (उदक एकादश)- चाँवल आदि दस द्रव्यों को मिलाकर जल जिनका ग्यारहवाँ भोजन हैं। कंदप्पिय- अनेक प्रकार के हास्य करने वाले, कंदर्पिक। कुक्कुइया-कौटकुच्य– भौहें, नयन, मुख, हस्त और चरण आदि द्वारा भाँडों के समान चेष्टा करने वाले। मोहरिय(मौखिरिक)– नाना प्रकार के असंबद्ध कार्य करने वाले। ग़ीयरइपिय (गीतरतिप्रिय)- जिन्हें गीत रतिप्रिय हो । गाना-बजाना आदि करने.वाले। नच्चणसील (नर्तनशील)- नाचना जिनका स्वभाव है। अत्तुक्कोसिय (आत्मोत्कर्षितक)- आत्म प्रशंसक। परपरिवाइय (परिपरिवादिक)– परनिंदक। ___भूइकम्मिय (भूतिकर्मिक)– ज्वर आदि रोगों को शान्त करने के लिए भभूत देने वाले। भुज्जोभुज्जो कोउयकारक (भूयः भूयः कौतुककारक)– सौभाग्य के लिए बार-बार स्नान करने वाले। (२३७)

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