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से खंडित तो नही हो गया अथवा उस में कोई वृद्धि तो नहीं हुई, आदि बातों की जानकारी के लिए पदंपरिमाण की प्रथा उपयोगी है।
अंग आगमों का परिचय देने के प्रसंग में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं के ग्रंथों में उनका पद परिमाण बताया है । श्वेतांबर परंपरा के ग्रंथ समवायांग, नंदी आदि और दिंगबर परंपरा के धवला, जय धवला, गोम्मटसार जीवकांड, अंगपण्णत्ति आदि ग्रंथों में अंगों का पदपरिमाण उपलब्ध है । उसे पहले श्वेतांबर ग्रंथों के अनुसार और अनन्तर दिगंबर ग्रंथों के अनुसार स्पष्ट करते हैं
श्वेतांबर परंपरा- (समवायांग और नंदीसूत्र के अनुसार) १. आचारांग - अठारह हजार पद । २. सूत्रकृतांग- छत्तीस हजार पद। ३. स्थानांग - ब्रहत्तर हजार पद। ४. समवायांग - एक लाख चवालीस हजार पद ।
५. व्याख्या प्रज्ञप्ति - चौरासी हजार पद (समवायांग के अनुसार) दो लाख अठासी हजार पद (नंदी सूत्रानुसार)। .
६.ज्ञाता धर्म कथा-संख्येय हजार पद
७. उपासक दशा- संख्येय लाख पद (समवायांग के अनुसार) संख्येय हजार पद (नंदीसूत्र के अनुसार) .. . ८: अन्तकृद्दशा - संख्येय हजार पद। . . ९. अनुत्तरोपपातिक दशा – संख्येय लाख पद (समवायांग) संख्येय हजार पद (नंदी सुत्र)! ..
१०. प्रश्न व्याकरण - संख्येय लाख पद (समवायांग) संख्येय हजार पद (नंदी सूत्र)।
११. विपाक सूत्र - संख्येय लाख पद (समवायांग) संख्येय हजार पद (नंदी सूत्र)। .
समवायांग वृत्ति और नंदी वृत्ति के अनुसार अंगों का पद परिमाण इस प्रकार
१. आचारांग- अठारह हजार पद। [आचारांग निर्यक्ति तथा शीलांक कृत वृत्ति में लिखा है कि आचारांग के प्रथम श्रुत स्कंध के नौ अध्ययनों के अठारह हजार पद हैं. तथा द्वितीय श्रुतस्कंध के इससे भी अधिक पद हैं।]
. २. सूत्रकृतांग- छत्तीस हजार पद।
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