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श्वेताम्बर मूर्ति पूजकों ने ही माना है, किन्तु स्थानकवासी परंपरा ने नहीं माना है। उसका आगे स्पष्टीकरण किया जा रहा है। - जिन अंग बाह्य शास्त्रों को आगम माना गया है, उनकी संख्या अधिकतम चौतीस है । वे निम्न लिखित पाँच भागों में विभाजित हैं- १. उपांग, २. प्रकीर्णक, ३. छेदसूत्र, ४. मूलसूत्र और ५. चूलिका सूत्र । अंगों और उक्त पाँच वर्गों में वर्गीकृत अंगबाह्य आगमों के नाम क्रमश: इस प्रकार है__ग्यारह अंग आगम-१. आचार, २. सूयगड़ (सूत्र- कृत), ३. ठाण (स्थान), ४. समवाय, ५. वियाह पण्णत्ति (व्याख्या प्रज्ञाप्ति), ६. नाया धम्म कहाओ (ज्ञाता धर्म कथा), ७. उवासगदसाओं (उपासक दशा), ८. अंतगडदसाओ (अन्तकृतं दशा) ९. अनुतरोव वाइय दसाओ (अनुत्तरोपपातिक दशा), १०. पण्हावागरणाइं (प्रश्न व्याकरणानि) और ११. विवाग सुयं (विपाक श्रुतम्) । बारहवाँ अंग दिट्ठिवाय अर्थात् दृष्टिवाद विच्छिन्न हो गया है।
- बारह उपांग- १. उववाइय (औपपातिकम्), २. रायपसेणइज्ज (राज प्रसेन जित्कं) अथवा राय पसेणियं (राजप्रश्नीय), ३. जीवा जीवाभिगम, ४. पण्णवणा (प्रज्ञापना), ५. सूर पण्णत्ति (सूर्य प्रज्ञप्ति), ६. जंबूदीव पण्णत्ति (जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति), ७. चंद पण्णत्ति (चंद्र प्रज्ञप्ति), ८. निरयांवलियाओ (निरयावलिक), ९. कप्पवडिंसियाओ (कल्पावतंसिका), १०. पुप्फियाओ (पुष्पिका), ११. पुप्फचुलाओ (पुष्प चूला) और १२. वण्हि दसाओ (वृष्णि दशा)।
दस प्रकीर्णक- १. चउसरण (चुत: शरण), २. आउर पच्चक्खाण (आतुर प्रत्याख्यान), ३. भत्त परिज्ञा (भक्त परिज्ञा), ४. संथार (संस्तार), ५. तंडुलवेयालिय (तन्दुल वैचारिंक), ६. चंद वेज्झय (चन्द्र वैद्यक), ७. देविंदत्थय (देवेन्द्रस्तव), ८. गणिविज्जा (गणिविद्या), ९. महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान) और १० वीरत्थय (वीरस्तव)।
छह छेद सूत्र- १. आयरदसा (आचार-दशा), २. कप्प (कल्प), ३. ववाहर (व्यवहार), ४. निसीह (निशीथ), ५. महानिसीह (महानिशीथ), ६. जीय कप्प (जीतकल्प)। जीतकल्प के स्थान पर कोई कोई पंचकप्प (पंचकल्प) को मानते हैं।
दो चूलिका सूत्र- १. नंदी और २. अणु योग दारा (अनुयोग द्वाराणि) ।
चार मूलसूत्र- १. उत्तरज्झयण (उत्तराध्ययन), २. दसवेयालिय (दशवैकालिक), ३. आवस्सय (आवश्यक) और ४. पिंडनिज्जुत्ति (पिंडनियुक्ति)।
अंग बाह्य आगमों की गणना में कोई कोई पिंड नियुक्ति के स्थान में ओघनियुक्ति को ग्रहण करते हैं। दस प्रकीर्णकों और छेद सूत्रों के नामों में भी भेद देखा जाता है ।
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