________________
उग्र तपस्याओं का आचरण कर अन्त में मोक्ष प्राप्त किया। * ९. अनुत्तरोपपातिक दशांग ___ नवग्रैवेयक के ऊपर विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित एवं सर्वार्थसिद्ध ये पाँच अनुत्तर विमान हैं। ये देवविमान सब विमानों में श्रेष्ठतम हैं। इसीलिए इन्हें अनुत्तर विमान कहते हैं । इस अंग में ऐसी आत्माओं का वर्णन है, जिन्होंने इस संसार में तप, संयम आदि उत्तम धर्म का पालन कर अनुत्तर विमान में जन्म लिया। वहाँ से आयु पूरी कर मनुष्य भव में उत्पन्न होकर वे उसी भाव में मोक्ष जाएंगे।
समवायांग में बताया है कि अनुत्तरोपपातिक दशा नौवाँ अंग है. और एक श्रुतस्कंध है। इसमें तीन वर्ग और दस अध्ययन है। नंदी में भी यह बताया गया है, किन्तु वहाँ अध्ययनों की संख्या का निर्देशन नहीं है।
दिगंबर परंपरा संमत राजवार्तिक आदि ग्रंथों में भी इसका परिचय दिया गया है । उसमें इसके तीन वर्गों का उल्लेख नहीं है, किन्तु ऋषिदास आदि से संबंधित दस अध्ययनों का ही उल्लेख है। स्थानांग में दस अध्ययनों के नाम इस प्रकार बताए हैं-ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिक संस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र
और अतिमुक्तक । राजवार्तिक व स्थानांग में जिन नामों का उल्लेख है, उनमें से कुछ नाम उपलब्ध आगम में मिलते हैं, जैसे वारिषेण (राजवार्तिक) धन्य सुनक्षत्र तथा ऋषिदास (स्थानांग, राजवार्तिक)।
अनुत्तरोपपातिक दशा के अंत में लिखा है कि इसका एक श्रुतस्कंध है, तीन वर्ग हैं और तीन उद्देशनकाल हैं, जिनका तीन दिन में अध्ययन पूर्ण होता है । उपलब्ध अनुत्तरोपपातिक दशा तीन वर्गों में विभक्त हैं। प्रथम में दस, द्वितीय में तेरह और तृतीय में दस अध्ययन हैं । कुल मिलाकर तीनों वर्गों में तैंतीस अध्ययन हैं। प्रत्येक अध्ययन में एक-एक महापुरुष की जीवनी का वर्णन किया गया है । उनके नाम इस प्रकार हैं- १. जाली, मयाली, उपजाली, पुरुषसेन, वारिषेण, दीर्घदन्त, लट्ठदन्त, विहल्ल, वेहायस और अभय कुमार । २. दीर्घसेन, महासेन, नष्टदंत, गूढ़दन्त, शुद्धदन्त, हल्लद्रुम, द्रुमसेन, सिंह, सिंहसेन, महासिंह सेन, महाद्रुम सेन और पुष्पसेन । ३. धन्ना, सुनक्षत्र, ऋषि दास, पेल्लक, रामपुत्र, चंद्र, पुष्टिमात्रिक, पेढ़ालपुत्र, पोटिल्ल और वेहल्ल।।
इनमें से धन्ना का चरित्र तो विश्रुत है । ये भद्रा सार्थवाही के पुत्र थे। जितने भोग विलास के साधन इनके पास थे, उतने अन्य किसी के पास नहीं थे। पहले ये जितने भोग विलास में डूबे हुए थे, उतने ही या उससे भी बढ़कर ये तप साधना में तल्लीन हुए । इनके तपोमय जीवन का वर्णन इतना अनूठा है कि जैन साहित्य में तो क्या, सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में दृष्टिगोचर नहीं होता।
(७०)