Book Title: Dharm ke Dash Lakshan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ BBBBEBERRCBBBBBBBB00888 दशधर्म बना जो क्रोध-मद-माया अपावन, लोमरूप विमाव हैं। उनके अमाव स्वमावमय, उत्तमक्षमादि स्वभाव हैं । उत्तमक्षमादि स्वभाव ही, इस आत्मा के धर्म हैं। है सत्य शाश्वत ज्ञानमय, निजधर्म शेष अधर्म हैं । 888888888888888888888888888888888 निज आत्मा में रमण संयम, रमण ही तप त्याग है। निज रमण आकिंचन्य है, निज रमण परिग्रह-त्याग है ।। निज रमणता ब्रह्मचर्य है, निज रमणता 'दशधर्म' है। निज जानना पहिचानना, रमना धरम का मर्म है । BRETOBEEGREE88888888888888888888888 अरहन्त हैं दशधर्मधारक, धर्मधारक सिद्ध हैं। आचार्य हैं, उवझाय हैं, मुनिराज सर्व प्रसिद्ध हैं । जो आत्मा को जानते, पहिचानते, करते रमण । वे धर्मधारक, धर्मधन हैं, उन्हें हम करते नमन | 838383333333333333333333333333333333333383

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 193