Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
आरम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणतम्, एकम् अनारम्भसत्यमनः प्रयोगपरिणतम्, एवम् एतेन गमन द्विक्संयोगेन ज्ञातव्यम्, सर्वे संयोगाः यत्र यावन्तः उत्तिष्ठन्ते ते भणितव्या यावत सर्वार्थसिद्धकइति ये मिश्रपरिणते किं मनोमिश्रपरिणते ? एवं मिश्रपरिणते अपि ये विस्त्रसापरिणते किं वर्णपरिणते, गन्धपरिणते ? एवं ओगपरिणया वा ) सत्यमनः प्रयोगपरिणत वे दो द्रव्य आरंभसत्यमनःप्रयोगपरिण भी होते हैं यावत् असमारंभ सत्यमनः प्रयोगपरिणत भी होते हैं । ( अहवा एंगे आरंभ सचमणप्पओगपरिया) अथवा एकद्रव्य आरंभ सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है (एंगे अणारंभसचमणप्पओगपरिणया) दूसरा अनारंभ सत्यमनः प्रयोगपरिणत होता है । ( एवं (एएणं गम एणं. दुयसंजोगेणं नेयव्यं) आरंभसत्यमनः प्रयोगादि पददर्शित faeसंयोगवाले अभिलापक्रमसे अन्य संरंभ आदि चारोंका द्विद्रव्य जानना चाहिये । (सव्वे संजोगा जत्थ जत्थिया उट्ठेति, ते भाणियव्वा जाव सव्वट्टसिद्ध गई) इस तरह जहां जितने द्विकसंयोग होवें उतने सबद्विसंयोग कहना चाहिये यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिकदेवतक ( जइ मीसा परिणया किं मणमीसापरिणए) हे भदन्त ! यदि वे दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं तो क्या वे मनोमिश्रपरिणत होते हैं इत्यादि ? ( एवं मीसा ५० वि०) हे गौतम ! जैसा प्रयोग परिणत के संबंध में कहा गया है उसी तरहसे मिश्रपरिणत के संबंध में भा પ્રયાગ પરિણત તે એ દ્રવ્યે! આર ભસત્યમનપ્રયોગ પરિણત પશુ હાય છે. ચાવअसभारंभ सत्यमनप्रयोग परिबुत पशु होय छे. ( अहवा एगे आरंभसच्चमणप्पओगपरिणया) अथवा येउ द्रव्य माल सत्यमनुप्रयोग परिशुत होय छे ( एगे अणारंभ सच्च मणप्पओगपरिणया ) श्रीभुं नारंल सत्यभनप्रयोग परिष्कृत होय छे एवं ए एणं गम एणं दुयसंजोगेणं नेयन्त्रं ) आरंभ सत्यमनप्रयोगादी यहोभां अतावेस કિસ ચાગવાળા અભિલાપના ક્રમથી અન્યસંરભઆદી ચારેના બે પ્રકારના દ્રવ્યો જાણી सेवा. ( सब्वे संजोगा जत्थ जत्थिया उट्ठेति ते भाणियव्वा, जाव सव्वसिद्ध गई ) मे राते क्या नेटवां द्विसयोग होय त्यां तेटला मघा द्विम्सयोग महेवा लेि યાવત सर्वार्थ सिद्धि विभानवासी हेव सुधी (जेइमीसा परिणया किं मणमीसा परिणए ) हे भगवन् मे ते मे द्रव्य मिश्रपरित होय तो शु त भने॥भश्र पारयत होय ? छत्याहि ( एवं मीसा प. त्रि. ) डे गौतम नेतुं प्रयोग परियुतना संबंधर्भा ४ छे मेन ते मिश्र परितना संबंधां पशु भी सेवं (जइ वीससा परिणया किं वन्न परिणया, गंधपरिणया) हे भगवन् ले यो मे द्रव्य विस्खसा परिणत હૅય છે તેા શું ? તે ત્રણ રૂપથી પરિણત હાય છે અગર ગધરૂપથી પરિણત હાય છે?
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬