Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 721
________________ अमेयचन्द्रिका टी. श.८ उ.६ सु.३ निग्रंन्थराधकतानिरूपणम् ७०९ 'तीसे णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्म पडिवज्जामि' तस्या मनसि खलु एवं भावना भवति-इहैव अत्रैव तावत् अकृत्यस्थाने अहम् एतस्य स्थानस्य एतद् अकृत्यस्थानम् आलोचयामि स्व मनसि, यावत् प्रतिक्रामामि-मिथ्यादुष्कृतं ददामि, निन्दामि, ग, वित्रोटयामि विशोधयामि, अकरणतया अभ्युत्तिष्ठामि यथाई प्रायश्चित्तं तपःकर्म प्रतिपद्य, 'तओपच्छा पबत्तिणीए अंतीयं आलोएस्सामि जाव पडि वज्जिस्सामि' ततः पश्चात् प्रवर्तिन्याः साध्व्याः अन्तिकं समीपम् आलोचयिष्यामि, यावत् तपाकर्म प्रतिपत्स्ये स्वीकरिष्ये, 'सा य संपट्टिया असंपत्ता पवत्तिणीय अमु'तीसेणं एवं भवइ, इहेव ताव अहं एयरस ठाणस्स आलोएमि, जाव तवोकम्मं पडिवज्जामि' और बन जाने पर फिर उसके मन में ऐसी भावना आगई होवे कि मैं पहिले अपनेही मनसे इसी अकृत्यस्थानपर इस अकृत्यस्थानकी आलोचना करलेती हूं-यावत् प्रतिक्रमण करलेती हूं-मिथ्यादुष्कृत देती हूं, निंदा करलेतीहू , गह कर लेती हूं, इसके अनुबंधको छेद लेती हू, प्रायश्चित्त के लेनेसे पापपङ्कका (पापरूपीकीचड) प्रक्षालन करलेती हूं, आगे ऐसा कार्यमुझसे न बने इसके लिये मै अपने आपको तैयार करलेतीहूं तथा यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तपकर्मको स्वीकार करती हूं, इस प्रकारसे वह अपने मनसे मनमें सब कुछ पूर्वोक्त रूपसे करके 'तओपच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि, जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि' बाद में ऐसा विचार और करती है कि मैं अब यहांसे चलकर प्रवर्तिनीके पास जाउँगी और उनसे आलोचना करूंगी, यावत् तपाकर्म स्वीकार करूंगी। इस प्रकारसे विचार कर 'सायसंपहिया असंपत्ता माह तना मनमा मेवी माना ही थाय छ 'इहेव ताव अहं एयरस ठाणस्स आलोएमि, जाव तवोकम्म पडिवज्जामि' पडai तो हुमडी [ अत સ્થાન પરજ] આ અકૃત્ય સ્થાનની આલેચના કરી લઉં છું, પ્રતિક્રમણ કરી લઉં છું, નિંદા તથા ગઈ કરી લઉં છું, તેને અનુબંધને છેદી નાખું છું–પાયશ્ચિત્ત લઈને પાપ પંકને ધઈ નાખું છું, ભવિષ્યમાં એવું ન કરવાનો નિશ્ચય કરું છું, અને યથાયોગ્ય પ્રાયશ્ચિત્તરૂપ तपना सी.२ री छु. २॥ प्रमाणे मत:४२६१ ५४ री 'तओं पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि, जाव तवोकम्म पडिवज्जिस्सामि' તે પ્રવતિની વૃિદ્ધ સાધ્વી ] પાસે જઈને આ અત્યસેવનની આલેચના આદિ કરીને प्रायश्चित्त३५ सेवाने विचार रे छ, म प्रभारी विया२ शन 'सा य संपडिया श्री. भगवती सूत्र :

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