Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. ६ . २ निर्ग्रन्थदानधर्म निरूपणम् ६७७ षणविशिष्टाय निर्ग्रन्थाय मासुकादिदाने गृहपतेरेकान्तेन निर्जरा भवतीति सूचितम् आहारार्थम् अनुपविष्टनिग्रन्थं प्रति कश्चित् श्रावको द्वाभ्यां पिण्डाभ्यां करपटिकादि भोजनाभ्याम् उपनिमन्त्रयेत् भिक्षो ! गृहाणेदं पिण्डद्वयमितिरीत्या नियोजयेत, 'एगं आउसो ! अप्पणा भुंजाहि, एग थेराणं दलयाहि ' हे आयुष्मन् निग्रेन्थ ? तत्र एकं पिण्डं भोजनम् आत्मना स्वयमेव भुइक्ष्व, एकम् अन्यच्च भोजनपिण्डं स्थविराणां स्थविरेभ्यो देहि इति ‘से य तं पिण्डं पडिग्गहेजा' स च निर्ग्रन्थस्तं पिण्डं स्थविराय दीयमानमाहारं प्रतिगृहायात्, गृहीत्वा निग्रन्थः स्वस्थानं गतः पश्चात् 'थेराय से अणुगवे. विशिष्ट उस निर्ग्रन्थ के लिये प्रासुकादि आहार का दान देता हैक्योंकि इस प्रकार के निर्ग्रन्थ के लिये आहार आदि का दिया गया दान दाता के लिये अपने कर्मों को निर्जरा का एकान्तरूप से कारण होता है। यही बात 'निग्गंथं च।' इस पद में च शब्द से सूत्रकारने सूचित की है। आहार आदि का दान देते समय दाता गृहस्थ उस निर्ग्रन्थ से क्या कहता है-इस बात को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं-'एगं आउसो ! अप्पणा झुंजाहि एगं थेराणं दलयाहि वह दाता गृहस्थ उससे कहता है कि आयुष्मन् ! निर्ग्रन्थ! इस प्रदत्त दान में से एक पिण्ड तुम अपने आहार के उपयोग में लेना और दूसरा पिण्ड अन्य स्थविरों को देना से य तं पिंडं पडिगाहेजा' इस प्रकार सुनकर वह उस पिंड को अपने पात्र में ले लेता है । और लेकर यहां से अपने स्थान पर आ जाता है। ઘેર જાય છે. દાતા ગૃહસ્થ સંયતાદિ વિશેષણવાળાને શ્રમણ નિર્ણયને પ્રાસાદિ આહારનું દાન કરે છે. આ રીત સંયતાદિ વિશેષણવાળા નિગ્રંથને આહારાદિનું દાન દેવાથી દાતાનાં उनी सन्तत: (सपा) नि। याय छे. ०४ पात निग्गंथं च णं' भां 'च' थी सूत्रारे सूयत ४२ छे. आडार्नुि हान हेती मते हाता गृहस्थ ते नियने शु४ छे ते सूत्ररे नीयना पायमा ४८ ज्यु छ- 'एगं आउसो ! अप्पणा झुंजाहि, एग थेराणं दलयाहि त हाता गृहस्थ तन छ। હે આયુશ્મન ! નિગ્રંથ ! મેં આપને આપેલા દાનમાંથી એક પિંડ તમે તમારા माहाना अयोगमा सेन, मने भान पिसन्य स्थविशने मापन.' 'से य तं पिडं पडिगाहेज्जा' मा प्रभार हातानी वात सामान ते नियम्य पिंडने पाताना पामा स से छे. अने त्या२ मा पाताने स्थान तय छे. 'थेराय से अणुगंवेसियवासिया जत्थेव अणुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा' भने पछी ते स्थविशनी तपास ४२१। भाउ
श्री. भगवती सूत्र :