Book Title: Vaani Vyvahaar Me
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 15
________________ वाणी, व्यवहार में... १८ वाणी, व्यवहार में... प्रतिपक्षी भाव नहीं होते, और इसी प्रकार आपको भी वहाँ तक पहुँचना यह जगत् है, तब से ऐसे का ऐसा ही है। सत्युग में जरा कम बिगड़ा हुआ वातावरण होता है, अभी अधिक असर है। रामचंद्रजी के समय में सीता का हरण कर जानेवाले थे। तो अभी नहीं होंगे? यह तो चलता ही रहेगा। यह मशीनरी ऐसी ही है पहले से ही। और उसे सूझ नहीं पड़ती है। खुद की जिम्मेदारियों का भान नहीं है, इसलिए गैर जिम्मेदारीवाला बोलना नहीं । गैर जिम्मेदारीवाला वर्तन करना नहीं। गैर जिम्मेदारीवाला कुछ भी करना नहीं। सारा पोज़िटिव लेना। किसीका अच्छा करना हो तो करने जाना। नहीं तो बुरे में पड़ना ही नहीं। और बुरा सोचना नहीं। बरा सुनना ही नहीं किसीका। बहत जोखिमदारी है। नहीं तो इतना बडा जगत, उसमें मोक्ष तो खुद के भीतर ही पड़ा हुआ है और खुद को मिलता नहीं है! और कितने ही जन्मों से भटकते रहते हैं। घर में पत्नी को डाँटे तो वह समझता है कि किसीने सुना ही नहीं न! यह तो ऐसी ही है न! छोटे बच्चे हों, तब उनकी उपस्थिति में पतिपत्नी चाहे जैसा बोलते हैं। वे समझते हैं कि यह छोटा बच्चा क्या समझनेवाला है? अरे, भीतर टेप हो रहा है, उसका क्या? वह बड़ा होगा तब वह सब बाहर निकलेगा! इतनी अपनी कमजोरी जानी ही चाहिए कि प्रतिपक्षी भाव उत्पन्न नहीं हों। और कभी हुए हों तो हमारे पास प्रतिक्रमण का हथियार है, उससे मिटा डालें। पानी कारखाने में पहुंच गया हो, पर बर्फ नहीं बना तब तक हर्ज नहीं है। बर्फ हो गया फिर अपने हाथ में नहीं रहेगा। प्रश्नकर्ता : वाणी बोलते समय के भाव और जागृति के अनुसार टेपिंग होता है? दादाश्री : नहीं। वह टेपिंग वाणी बोलते समय नहीं होता है। यह तो मूल पहले ही हो चुका है। और फिर आज क्या होता है? छपे हुए के अनुसार ही बजता है। प्रश्नकर्ता : फिर अभी बोलें, उस समय जागृति रखें तो? दादाश्री : अभी आपने किसीको धमकाया। फिर मन में ऐसा हो कि 'इसे धमकाया वह ठीक है।' इसलिए फिर वापिस उस तरह के हिसाब का कोडवर्ड टेप हुआ। और 'इसे धमकाया. वह गलत हआ।' ऐसा भाव हुआ, तो कोडवर्ड आपका नई प्रकार का हुआ। यह धमकाया, वह ठीक है। ऐसा माना कि उसके जैसा ही फिर कोड उत्पन्न हुआ और उससे वह अधिक वज़नदार बनता है। और यह बहुत हो गया, ऐसा नहीं बोलना चाहिए। ऐसा क्यों होता है?' ऐसा हो तो कोड छोटा हो गया। प्रश्नकर्ता : तीर्थंकरों की वाणी के कोड कैसे होते हैं? दादाश्री : उन्होंने कोड ऐसा नक्की किया हुआ होता है कि मेरी वाणी से किसी भी जीव को किंचित् मात्र भी दु:ख नहीं हो। दु:ख तो हो ही नहीं, पर किसी जीव का किंचित् मात्र प्रमाण भी नहीं दुभे। पेड़ का भी प्रमाण नहीं दुभे। ऐसे कोड सिर्फ तीर्थंकरों के ही हुए होते हैं। प्रश्नकर्ता : जिसे टेप ही नहीं करना हो, उसके लिए क्या रास्ता है? सामान्य व्यवहार में बोलने में हर्ज नहीं है। पर देहधारी मात्र के लिए कुछ भी उल्टा-सीधा बोला गया तो वह भीतर टेपरिकॉर्ड हो गया। इस संसार के लोगों की टेप उतारनी हो तो समय कितना लगेगा? एक जरासा छेड़ो तो प्रतिपक्षी भाव टेप होते ही रहेंगे। तुझमें कमजोरी ऐसी है कि छेड़ने से पहले ही तू बोलने लगेगा। प्रश्नकर्ता: खराब बोलना तो नहीं है. पर खराब भाव भी नहीं आना चाहिए न? दादाश्री : खराब भाव नहीं आना चाहिए, वह बात सही है। भाव में आता है, वह बोल में आए बगैर रहता नहीं है। इसलिए बोलना यदि बंद हो जाए न तो भाव भी बंद हो जाएँ। ये भाव तो बोलने के पीछे रहा प्रतिघोष है। प्रतिपक्षी भाव तो उत्पन्न हुए बगैर रहते ही नहीं न! हमें

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