Book Title: Vaani Vyvahaar Me
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 37
________________ वाणी, व्यवहार में.... नहीं है, ऐसा-वैसा।' ऐसा भी कहते हो न ? हमेशा प्रेम से ही दुनिया सुधरती है। इसके सिवाय दूसरा कोई उपाय ही नहीं है उसके लिए । यदि धाक से सुधरता हो न तो यह गवर्नमेन्ट डेमोक्रेसी .... सरकार लोकतंत्र हटा दे और जो कोई गुनाह करे, उसे जेल में डालकर उसे फाँसी दे दे। ६१ : प्रश्नकर्ता फिर भी यदि बच्चे टेढ़े चलें तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : बच्चे टेढ़े रास्ते जाएँ, तो भी हमें उन्हें देखते रहना और जानते रहना चाहिए। और मन में भाव निश्चित करना चाहिए, और प्रभु से प्रार्थना करनी चाहिए कि इस पर कृपा करो। 'रिलेटिव' समझकर औपचारिक रहना चाहिए! बच्चे को तो नौ महीने पेट में रखना होता है। फिर चलाना, घुमाना, छोटा हो तब तक । फिर छोड़ देना चाहिए। ये गायें भैंसें भी छोड़ देती हैं न? बेटे को पाँच वर्ष तक टोकना पड़ता है, फिर टोक भी नहीं सकते और बीस वर्ष बाद तो उसकी पत्नी ही उसे सुधारेगी। हमें नहीं सुधारना होता है। प्रश्नकर्ता: बच्चों को कहने जैसा लगे तो डाँटते हैं, तो उसे दुःख भी होता है तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : फिर हमें अंदर माफ़ी माँग लेनी चाहिए। इस बच्चे को कुछ अधिक कह दिया हो और दुःख हो गया हो तो आपको बच्चे से कहना चाहिए कि, 'माफ़ी माँगता हूँ।' ऐसा कहने जैसा नहीं हो तो अतिक्रमण किया इसीलिए अंदर से प्रतिक्रमण करो । प्रश्नकर्ता: बच्चों के साथ बच्चा हो जाएँ और उस प्रकार से व्यवहार करें, तो वह किस तरह? दादाश्री : बच्चों के साथ अभी बच्चे की तरह व्यवहार रखते हो? हम बड़े हों तो उसका भय लगा करता है। वैसा भय नहीं लगे उस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए। उसे समझाकर उसका दोष निकालना चाहिए, डराकर नहीं निकालना चाहिए। नहीं तो डराकर काम नहीं लगता। आप ६२ वाणी, व्यवहार में... बड़ी उम्र के, वे छोटी उम्र के डर जाएँगे बेचारे! पर उससे कोई दोष जाएगा नहीं, दोष तो बढ़ता रहेगा अंदर पर यदि समझाकर निकालो तो जाएगा, नहीं तो जाएगा नहीं । प्रश्नकर्ता: ऐसा होता है, यह तो मेरा खुद का अनुभव है वही कह रहा हूँ, मेरा जो प्रश्न है यही बात है। यह मेरा खुद का ही प्रश्न है और बार-बार मेरे साथ ऐसा हो ही जाता है। दादाश्री : हाँ, इसीलिए मैं यह उदाहरण दे रहा हूँ कि बेटा आपका बारह साल का हो, अब आप उससे सारी बातें करो, तो उन सभी बातों में कितनी ही बातें वह समझ सकेगा और कितनी ही बातें नहीं समझ सकेगा। आप क्या कहना चाहते हो वह उसकी समझ में नहीं आता है। आपका व्यू पोइन्ट क्या है वह उसकी समझ में नहीं आता, इसलिए आपको धीरे से कहना चाहिए कि, 'मेरा हेतु ऐसा है, मेरा व्यू पोइन्ट ऐसा है, मैं ऐसा कहना चाहता हूँ ।' तुझे समझ में आया या नहीं आया मुझे कहना । और तेरी बात मुझे समझ में नहीं आए तो मैं समझाने का प्रयत्न करूँगा, ऐसा कहना । इसलिए अपने लोगों ने कहा है न कि भाई, सोलह वर्ष के बाद, कुछ वर्षों के बाद फ्रेन्ड की तरह स्वीकरना ऐसा कहा है, नहीं कहा? फ्रेन्डली टोन में हो तो अपना टोन अच्छा निकलता है। नहीं तो रोज़ बाप होने जाएँ न तो कुछ अच्छा नहीं होता है। चालीस वर्ष का हो गया हो और हम बाप होने फिरें, तो क्या होगा? ! प्रश्नकर्ता: बेटा खराब शब्द बोला, विरोध करता हो, उसे नोंध कर रखें, तो उस अभिप्राय के कारण लौकिक वर्तन में गाँठ पड़ जाएगी। उससे सामान्य व्यवहार उलझ नहीं जाएगा? दादाश्री : नोंध ही इस दुनिया में बेकार है। नोंध ही इस दुनिया में नुकसान करती है। कोई बहुत मान दे तो नोंध नहीं रखें और कोई बहुत गालियाँ दे, 'आप नालायक हो, अनफिट हो।' वह सुनकर नोंध नहीं रखनी चाहिए। उसे नोंध रखनी हो तो रखे। हम इस पीड़ा को कहाँ लें वापिस ? !

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